सोग़ में है ख़ुदा, क्या हुआ
मर गए हम बुरा क्या हुआ
बुझ गया चांद का क़ुमक़ुमा
चांदनी का नशा क्या हुआ
रास्ते मुंतज़िर ही रहे
मंज़िलों का पता क्या हुआ
इश्क़ में घर जला आपका
दुश्मनों का भला क्या हुआ
जुर्म के ज़ोर के सामने
शाह का दबदबा क्या हुआ
शैख़ हैं फिर ख़राबात में
ख़ुल्द का फ़लसफ़ा क्या हुआ
नफ़रतों की हिदायत करे
वो मेरा मुस्तफ़ा क्या हुआ ?
(2017)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ:
मर गए हम बुरा क्या हुआ
बुझ गया चांद का क़ुमक़ुमा
चांदनी का नशा क्या हुआ
रास्ते मुंतज़िर ही रहे
मंज़िलों का पता क्या हुआ
इश्क़ में घर जला आपका
दुश्मनों का भला क्या हुआ
जुर्म के ज़ोर के सामने
शाह का दबदबा क्या हुआ
शैख़ हैं फिर ख़राबात में
ख़ुल्द का फ़लसफ़ा क्या हुआ
नफ़रतों की हिदायत करे
वो मेरा मुस्तफ़ा क्या हुआ ?
(2017)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ:
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