जश्ने-वहशत मना रहे हैं वो:
ख़ूब ताक़त दिखा रहे हैं वो:
बांट कर अस्लहे मुरीदों को
और दहशत बढ़ा रहे हैं वो:
क़त्ल करना सवाब है जिनको
क्यूं मुहब्बत जता रहे हैं वो:
ताजिरों को नियाज़ के बदले
रोज़ दौलत लुटा रहे हैं वो:
चंद दाने उछाल कर हम पर
रस्मे-राहत निभा रहे हैं वो:
नस्लो-मज़्हब में बांट कर दुनिया
क़स्रे-नफ़्रत बना रहे हैं वो :
कोई वादा निभा नहीं पाए
तो सियासत सिखा रहे हैं वो !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: जश्ने-वहशत : उन्माद-पर्व ; अस्लहे : अस्त्र-शस्त्र ; मुरीदों : भक्त जन ; दहशत : भय, आतंक ; सवाब : पुण्य-कर्म ; ताजिरों : व्यापारियों ; नियाज़ : भिक्षा ; रस्मे-राहत : सहायता की प्रथा / औपचारिकता ;
नस्लो-मज़्हब : प्रजाति और धर्म ; क़स्रे-नफ़्रत : घृणा का महल ।
ख़ूब ताक़त दिखा रहे हैं वो:
बांट कर अस्लहे मुरीदों को
और दहशत बढ़ा रहे हैं वो:
क़त्ल करना सवाब है जिनको
क्यूं मुहब्बत जता रहे हैं वो:
ताजिरों को नियाज़ के बदले
रोज़ दौलत लुटा रहे हैं वो:
चंद दाने उछाल कर हम पर
रस्मे-राहत निभा रहे हैं वो:
नस्लो-मज़्हब में बांट कर दुनिया
क़स्रे-नफ़्रत बना रहे हैं वो :
कोई वादा निभा नहीं पाए
तो सियासत सिखा रहे हैं वो !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: जश्ने-वहशत : उन्माद-पर्व ; अस्लहे : अस्त्र-शस्त्र ; मुरीदों : भक्त जन ; दहशत : भय, आतंक ; सवाब : पुण्य-कर्म ; ताजिरों : व्यापारियों ; नियाज़ : भिक्षा ; रस्मे-राहत : सहायता की प्रथा / औपचारिकता ;
नस्लो-मज़्हब : प्रजाति और धर्म ; क़स्रे-नफ़्रत : घृणा का महल ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें