बग़ावत वक़्त से
तय नहीं हम पर रखें इल्ज़ाम क्या
जान कर की है बग़ावत वक़्त से
इब्तिदाए-जंग क्या अंजाम क्या
दांव पर फ़तवे नहीं अब क़ौम है
फिर पढ़ें मुफ़्ती कि है इस्लाम क्या
क़द्रदां को हर ख़ज़ाना हेच है
बोलिए बादे-सबा के दाम क्या
आप मेहमां हो गए सब मिल गया
दिलनवाज़ी से बड़ा ईनाम क्या
एक मंज़िल एक मक़सद एक रू:
इश्क़ है तो गर्दिशे-अय्याम क्या
और क्या तोहमत लगाएगा ख़ुदा
शायरों का नाम क्या बदनाम क्या !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ : हुक्काम : शासक वर्ग, अधिकारी गण ; इल्ज़ाम : आरोप ; बग़ावत : विद्रोह ; इब्तिदाए-जंग : युद्ध का आरंभ ; अंजाम : परिणति ; फ़तवे : धार्मिक निर्देश ; क़ौम : धर्मानुयायी ; मुफ़्ती : धार्मिक निर्देश देने वाले ; क़द्रदां : मूल्य समझने वाले, पारखी ; ख़ज़ाना : कोश ; हेच : तुच्छ , अपर्याप्त ; बादे-सबा : प्रभात समीर ; दाम : मूल्य ; दिलनवाजी : दूसरे के मन की मानना, मन रखना ; ईनाम : पुरस्कार ; मंज़िल : लक्ष्य ; मक़सद : उद्देश्य ; रू: : आत्मा ; गर्दिशे-अय्याम: काल-चक्र, समय का भटकाव ; तोहमत : कलंक ।
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