जीना पड़ा तो दर्द जबीं पर उभर गए
ख़ुद्दार ख़्वाब टूट ज़मीं पर बिखर गए
मुश्किल में है ज़मीर तो ईमान दांव पर
कुछ बेहया दरख़्त जड़ों से उखड़ गए
मस्जिद में हो पनाह न मंदिर में आसरा
किसका क़ुसूर है कि परिंदे उजड़ गए
ग़म इस तरह मिले कि दिलो-जान हो गए
मेहमां-ए-चंद रोज़ अज़ल तक ठहर गए
दिल को है जिनकी फ़िक्र वही बेनियाज़ हैं
कैसे कहें कि ख़्वाब हमारे संवर गए
देहक़ां के हाल-चाल से दिल्ली है बे-ख़बर
सीने में दिल नहीं है कि एहसास मर गए
जब-जब किसी ग़रीब के दिल से उठी है आह
वो ज़लज़ले हुए कि ज़माने सिहर गए !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: जबीं : ललाट ; ख़ुद्दार ख़्वाब: स्वाभिमानी स्वप्न ; ज़मीं :धरा ; ज़मीर : विवेक ; ईमान : आस्था ; बेहया : निर्लज्ज ; दरख़्त : वृक्ष ; पनाह : शरण ; आसरा : आश्रय ; क़ुसूर :दोष; परिंदे : पक्षी गण ; दिलो-जान : हृदय और प्राण ; मेहमां-ए-चंद रोज़ : कुछ दिन के अतिथि ; अज़ल : मृत्यु ; बेनियाज़ : निश्चिंत ; देहक़ां : कृषक गण ; ज़लज़ले : भूकंप ।
ख़ुद्दार ख़्वाब टूट ज़मीं पर बिखर गए
मुश्किल में है ज़मीर तो ईमान दांव पर
कुछ बेहया दरख़्त जड़ों से उखड़ गए
मस्जिद में हो पनाह न मंदिर में आसरा
किसका क़ुसूर है कि परिंदे उजड़ गए
ग़म इस तरह मिले कि दिलो-जान हो गए
मेहमां-ए-चंद रोज़ अज़ल तक ठहर गए
दिल को है जिनकी फ़िक्र वही बेनियाज़ हैं
कैसे कहें कि ख़्वाब हमारे संवर गए
देहक़ां के हाल-चाल से दिल्ली है बे-ख़बर
सीने में दिल नहीं है कि एहसास मर गए
जब-जब किसी ग़रीब के दिल से उठी है आह
वो ज़लज़ले हुए कि ज़माने सिहर गए !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: जबीं : ललाट ; ख़ुद्दार ख़्वाब: स्वाभिमानी स्वप्न ; ज़मीं :धरा ; ज़मीर : विवेक ; ईमान : आस्था ; बेहया : निर्लज्ज ; दरख़्त : वृक्ष ; पनाह : शरण ; आसरा : आश्रय ; क़ुसूर :दोष; परिंदे : पक्षी गण ; दिलो-जान : हृदय और प्राण ; मेहमां-ए-चंद रोज़ : कुछ दिन के अतिथि ; अज़ल : मृत्यु ; बेनियाज़ : निश्चिंत ; देहक़ां : कृषक गण ; ज़लज़ले : भूकंप ।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (19-04-2016) को "दिन गरमी के आ गए" (चर्चा अंक-2317) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'