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शुक्रवार, 22 जनवरी 2016

दिल बताशा ...

दुख़्तरे-रज़  ने  तमाशा  कर  दिया
शैख़  का  ईमां  ख़ुलासा  कर  दिया

लूट  कर  दिल  आप  यूं  चलते  बने
जिस तरह  अहसां  बड़ा-सा  कर  दिया

दे  रहे  हैं    इश्क़  पर   इल्ज़ाम  वो
जैसे  हमने  जुर्म  ख़ासा  कर  दिया

तीरगी       की     बेहयाई    देखिए
चांदनी  पर    इस्तगासा    कर  दिया

मान  कर  हमने   ख़ुदा  का   मशवरा
दर्द  से  दिल  को  शनासा  कर  दिया

दिल न  सीने से  निकल कर  आ गिरे
सामने  गर  हमने  कासा  कर  दिया

भेज  कर  घर  पर  फ़रिश्ते  आपने
दिल  हमारा  भी  बताशा  कर  दिया !

                                                                       (2016)

                                                               -सुरेश  स्वप्निल

शब्दार्थ: दुख़्तरे-रज़ : अंगूर की बेटी, मदिरा; शैख़:धर्मोपदेशक; ईमां: आस्था; ख़ुलासा:सबके सामने लाना, रहस्योद्घाटन करना; अहसां: अनुग्रह; इल्ज़ाम :दोषारोपण; जुर्म: अपराध; ख़ासा: बहुत बड़ा; तीरगी : अंधकार; बेहयाई: निर्लज्जता; इस्तगासा :वाद दायर करना; मशवरा:  परामर्श, सुझाव; शनासा: परिचित; कासा : भिक्षा-पात्र; फ़रिश्ते : मृत्युदूत।

1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (23-01-2016) को "कुछ सवाल यूँ ही..." (चर्चा अंक-2231) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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