शायरी का क़द्रदां कोई नहीं
इस शग़ल का आसमां कोई नहीं
आलिमो-उस्ताद हैं सब बज़्म में
बस हमारा हमज़ुबां कोई नहीं
आज़मा लें तीर सारे आज ही
बाद इसके इम्तिहां कोई नहीं
दोस्तों की भीड़ में हैं सैकड़ों
और हम पर मेह्रबां कोई नहीं
नफ़्रतों की आग में सब जल गया
क्या वतन का पासबां कोई नहीं
चाहता है जब्र से दिल जीतना
शाह जैसा बदगुमां कोई नहीं
जाएंगे सारे अकेले क़ब्र तक
इस सफ़र में कारवां कोई नहीं !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: क़द्रदां: मूल्य समझने वाला; शग़ल : अभिरुचि, समय बिताने का साधन; आसमां : आकाश, संभावना; आलिमो-उस्ताद : विद्वान एवं गुरु ; बज़्म : गोष्ठी; हमज़ुबां : सम भाषी; मेह्रबां : कृपालु; नफ़्रतों: घृणाओं; पासबां : रक्षक, ध्यान रखने वाला; जब्र: अत्याचार; बदगुमां : कु-विचारी, भ्रमित; कारवां : यात्री-समूह।
इस शग़ल का आसमां कोई नहीं
आलिमो-उस्ताद हैं सब बज़्म में
बस हमारा हमज़ुबां कोई नहीं
आज़मा लें तीर सारे आज ही
बाद इसके इम्तिहां कोई नहीं
दोस्तों की भीड़ में हैं सैकड़ों
और हम पर मेह्रबां कोई नहीं
नफ़्रतों की आग में सब जल गया
क्या वतन का पासबां कोई नहीं
चाहता है जब्र से दिल जीतना
शाह जैसा बदगुमां कोई नहीं
जाएंगे सारे अकेले क़ब्र तक
इस सफ़र में कारवां कोई नहीं !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: क़द्रदां: मूल्य समझने वाला; शग़ल : अभिरुचि, समय बिताने का साधन; आसमां : आकाश, संभावना; आलिमो-उस्ताद : विद्वान एवं गुरु ; बज़्म : गोष्ठी; हमज़ुबां : सम भाषी; मेह्रबां : कृपालु; नफ़्रतों: घृणाओं; पासबां : रक्षक, ध्यान रखने वाला; जब्र: अत्याचार; बदगुमां : कु-विचारी, भ्रमित; कारवां : यात्री-समूह।
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