आदाबे-शिकायत क्या कहिए वो शाद भी हैं नाशाद भी हैं
कहते हैं हमें वो भूल गए फिर कहते हैं कुछ याद भी हैं
दिल मांग रहे हैं जो हमसे सौ बार हमें छू कर देखें
हम मोम कलेजा रखते हैं पर बाज़ जगह फ़ौलाद भी हैं
मासूम अदाओं से अब वो धोखा न हमें दे पाएंगे
पहचान चुके हैं हम उनको वो क़ातिल हैं सय्याद भी हैं
अफ़सोस नहीं कुछ शिकवे हैं कहिए तो सुना दें महफ़िल में
बेज़ार सही बर्बाद सही मुश्ताक़ भी हैं आज़ाद भी हैं
गुमनाम सही इस बस्ती में कहते हैं ग़ज़ल सच्चे दिल से
शागिर्द अगर हैं ग़ालिब के तो चार जगह उस्ताद भी हैं
या ख़ुश हो कर ख़ुम दे हमको या और कहीं का रुख़ कर लें
यूं हम दीवाने तश्ना लब ज़िद कर लें तो फ़रहाद भी हैं
वो अर्शे-नुहुम पर रहते हैं हम हैं कि असीरे-दुनिया हैं
नज़दीक बहुत हैं हम दोनों कहने को कई अब्आद भी है !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: आदाबे-शिकायत : शिकायत करने के शिष्टाचार; शाद : प्रसन्न; नाशाद : अप्रसन्न; बाज़ : कुछ, विशिष्ट; फ़ौलाद : इस्पात; मासूम : भोली; अदाओं : भंगिमाओं; क़ातिल : हत्यारा; सय्याद : बहेलिया; अफ़सोस : खेद ; शिकवे : पूर्वाग्रह; महफ़िल : गोष्ठी; बेज़ार : परेशान; मुश्ताक़ : आतुर; शागिर्द : शिष्य; ग़ालिब : हज़रत मिर्ज़ा ग़ालिब, महान शायर ; उस्ताद : गुरु; ख़ुम : मदिरा पात्र; रुख़ : दिशा; तश्नालब : प्यासे अधर वाले; फ़रहाद : शीरीं-फ़रहाद की प्रेम-कथा का नायक, जो पहाड़ खोद कर नहर निकाल लाया था ; अर्शे-नुहुम : नौवां आकाश, मिथक के अनुसार ख़ुदा के रहने का स्थान ; असीरे-दुनिया : संसार के बंदी ; अब्आद : दूरियां, अंतराल ।
कहते हैं हमें वो भूल गए फिर कहते हैं कुछ याद भी हैं
दिल मांग रहे हैं जो हमसे सौ बार हमें छू कर देखें
हम मोम कलेजा रखते हैं पर बाज़ जगह फ़ौलाद भी हैं
मासूम अदाओं से अब वो धोखा न हमें दे पाएंगे
पहचान चुके हैं हम उनको वो क़ातिल हैं सय्याद भी हैं
अफ़सोस नहीं कुछ शिकवे हैं कहिए तो सुना दें महफ़िल में
बेज़ार सही बर्बाद सही मुश्ताक़ भी हैं आज़ाद भी हैं
गुमनाम सही इस बस्ती में कहते हैं ग़ज़ल सच्चे दिल से
शागिर्द अगर हैं ग़ालिब के तो चार जगह उस्ताद भी हैं
या ख़ुश हो कर ख़ुम दे हमको या और कहीं का रुख़ कर लें
यूं हम दीवाने तश्ना लब ज़िद कर लें तो फ़रहाद भी हैं
वो अर्शे-नुहुम पर रहते हैं हम हैं कि असीरे-दुनिया हैं
नज़दीक बहुत हैं हम दोनों कहने को कई अब्आद भी है !
(2016)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: आदाबे-शिकायत : शिकायत करने के शिष्टाचार; शाद : प्रसन्न; नाशाद : अप्रसन्न; बाज़ : कुछ, विशिष्ट; फ़ौलाद : इस्पात; मासूम : भोली; अदाओं : भंगिमाओं; क़ातिल : हत्यारा; सय्याद : बहेलिया; अफ़सोस : खेद ; शिकवे : पूर्वाग्रह; महफ़िल : गोष्ठी; बेज़ार : परेशान; मुश्ताक़ : आतुर; शागिर्द : शिष्य; ग़ालिब : हज़रत मिर्ज़ा ग़ालिब, महान शायर ; उस्ताद : गुरु; ख़ुम : मदिरा पात्र; रुख़ : दिशा; तश्नालब : प्यासे अधर वाले; फ़रहाद : शीरीं-फ़रहाद की प्रेम-कथा का नायक, जो पहाड़ खोद कर नहर निकाल लाया था ; अर्शे-नुहुम : नौवां आकाश, मिथक के अनुसार ख़ुदा के रहने का स्थान ; असीरे-दुनिया : संसार के बंदी ; अब्आद : दूरियां, अंतराल ।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 21-01-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2228 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद