दिल किसी का
उधार ले आए
मुफ़्त का रोज़गार ले आए
वाद:-ए-सह्र पर यक़ीं
करके
हम शबे-इंतेज़ार ले आए
आरज़ू-ए-फ़रेब के सदक़े
नफ़रतों
के ग़ुबार ले
आए
इंतेख़ाबात
के
तमाशे से
मुश्किलें
बे-शुमार ले आए
क़र्ज़ उतरा नहीं
बुज़ुर्ग़ों का
आप भी बार बार ले
आए
दाल औक़ात में न थी अपनी
सूंघने
को अचार ले
आए
महफ़िले-बाद:कश मुनक़्क़िद थी
शैख़ परहेज़गार ले आए
आए जब वो तो चश्म ख़ाली थे
रफ्त: रफ्त: ख़ुमार ले आए
हम हैं ख़ानाबदोश मुद्दत से
लोग घर में बहार ले आए
शह्रे-ग़ालिब
सुकूं
न दे पाया
दर्दे-सर
हम हज़ार ले
आए !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: रोज़गार:व्यवसाय, आजीविका, व्यस्तता; वाद:-ए-सह्र: नव प्रातः का वचन; यक़ीं:विश्वास; शबे-इंतेज़ार:प्रतीक्षा की निशा; शबे-इंतेज़ार:छल/षड्यंत्रपूर्ण अभिलाषा; सदक़े:बलिहारी जाना; नफ़रतों:घृणाओं; ग़ुबार:अंधड़; इंतेख़ाबात:चुनावों; तमाशे: नाट्य, प्रदर्शन; मुश्किलें: कठिनाइयां; बे-शुमार:असंख्य; क़र्ज़:ऋण; बुज़ुर्ग़ों:पूर्वजों; औक़ात:सामर्थ्य; महफ़िले-बाद:कश:पियक्कड़ों की गोष्ठी; मुनक़्क़िद:आयोजित; शैख़:धर्मभीरु; परहेज़गार:अपथ्य का अभ्यास करने वाला; चश्म:नयन; ख़ाली: रिक्त; रफ्त: रफ्त:: धीरे धीरे; ख़ुमार: मदालस्य; ख़ानाबदोश: गृह-विहीन; मुद्दत: लंबा समय; बहार: बसंत; शह्रे-ग़ालिब: उर्दू के महानतम शायर हज़रत मिर्ज़ा ग़ालिब का नगर, दिल्ली; सुकूं: आश्वस्ति; दर्दे-सर: शिरो-पीड़ा।
:शब्दार्थ: रोज़गार:व्यवसाय, आजीविका, व्यस्तता; वाद:-ए-सह्र: नव प्रातः का वचन; यक़ीं:विश्वास; शबे-इंतेज़ार:प्रतीक्षा की निशा; शबे-इंतेज़ार:छल/षड्यंत्रपूर्ण अभिलाषा; सदक़े:बलिहारी जाना; नफ़रतों:घृणाओं; ग़ुबार:अंधड़; इंतेख़ाबात:चुनावों; तमाशे: नाट्य, प्रदर्शन; मुश्किलें: कठिनाइयां; बे-शुमार:असंख्य; क़र्ज़:ऋण; बुज़ुर्ग़ों:पूर्वजों; औक़ात:सामर्थ्य; महफ़िले-बाद:कश:पियक्कड़ों की गोष्ठी; मुनक़्क़िद:आयोजित; शैख़:धर्मभीरु; परहेज़गार:अपथ्य का अभ्यास करने वाला; चश्म:नयन; ख़ाली: रिक्त; रफ्त: रफ्त:: धीरे धीरे; ख़ुमार: मदालस्य; ख़ानाबदोश: गृह-विहीन; मुद्दत: लंबा समय; बहार: बसंत; शह्रे-ग़ालिब: उर्दू के महानतम शायर हज़रत मिर्ज़ा ग़ालिब का नगर, दिल्ली; सुकूं: आश्वस्ति; दर्दे-सर: शिरो-पीड़ा।
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