दर्द जाना नहीं ज़माने ने
ख़ूब दंगा किया दिवाने ने
तीर तो बे-लिहाज़ ही ठहरा
सर झुकाया ग़लत निशाने ने
सैकड़ों बस्तियां जला डालीं
वक़्त को आईना दिखाने ने
वस्ल के वक़्त होश खो बैठे
रह दिखाई शराबख़ाने ने
इश्क़ को शर्मसार कर डाला
आपके तिफ़्लिया बहाने ने
काम जो हो सका न दहशत से
कर दिखाया वो मुस्कुराने ने
ख़ुल्द के मा'अने बदल डाले
आपके बदअमल घराने ने !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: बे-लिहाज़:शील-संकोच विहीन; वस्ल: मिलन; रह: राह का लघु, मार्ग; शर्मसार: लज्जित; तिफ़्लिया: बचकाने, बच्चों-जैसे; दहशत: आतंक; ख़ुल्द: स्वर्ग; मा'अने: अर्थ-संदर्भ; बदअमल: अराजक; घराने: कुल, परिवार।
ख़ूब दंगा किया दिवाने ने
तीर तो बे-लिहाज़ ही ठहरा
सर झुकाया ग़लत निशाने ने
सैकड़ों बस्तियां जला डालीं
वक़्त को आईना दिखाने ने
वस्ल के वक़्त होश खो बैठे
रह दिखाई शराबख़ाने ने
इश्क़ को शर्मसार कर डाला
आपके तिफ़्लिया बहाने ने
काम जो हो सका न दहशत से
कर दिखाया वो मुस्कुराने ने
ख़ुल्द के मा'अने बदल डाले
आपके बदअमल घराने ने !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: बे-लिहाज़:शील-संकोच विहीन; वस्ल: मिलन; रह: राह का लघु, मार्ग; शर्मसार: लज्जित; तिफ़्लिया: बचकाने, बच्चों-जैसे; दहशत: आतंक; ख़ुल्द: स्वर्ग; मा'अने: अर्थ-संदर्भ; बदअमल: अराजक; घराने: कुल, परिवार।
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