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शनिवार, 4 अप्रैल 2015

अना का शिकार...

जब  तक  जुनूं-ए-इश्क़  ज़ेह् न  पर  सवार  है
हर    नौजवां   के    पास    यही     रोज़गार  है

समझे    थे    ख़ैरख्वाह    ग़रीबो-हक़ीर    सब
मुद्दत    हुई    वो     शख़्स   शह्र   से  फ़रार  है

इस    दौरे-बदज़नां  में     वही     कामयाब  है
जो   हाकिमो-वज़ीर  का    ख़िदमतगुज़ार   है

किस  बात  पर   यक़ीन  करें   शाहे-वक़्त  की
हर     रेज़:-ए-किरदार    अगर      दाग़दार   है

मत    मांगिए    हुज़ूर  !   न   दे    पाएंगे   इसे
आख़िर    दिले-ग़रीब    मिरा      ग़मगुसार  है

मानी-ए-हुस्न    फ़क्त    यही    तो  नहीं  जनाब
हर      कोई      आपका    ही      उम्मीदवार  है 

क्या  ख़ूब  अदब  है  ये  किस  तरह  के  हैं  अदीब 
जिसको   भी   देखिए   वो   अना  का  शिकार  है  !

                                                                                      (2015)

                                                                            -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: जुनूं-ए-इश्क़: प्रेमोन्माद; ज़ेह् न: मस्तिष्क; नौजवां: युवा; रोज़गार: आजीविका; ख़ैरख्वाह: शुभचिंतक; ग़रीबो-हक़ीर: निर्धन और अकिंचन लोग; मुद्दत: लंबा समय; शख़्स: व्यक्ति; शह्र; शहर, नगर; फ़रार: पकड़ से दूर; दौरे-बदज़नां: कुकर्मियों के प्रभुत्व का समय; कामयाब: सफल; हाकिमो-वज़ीर: अधिकारियों और मंत्रियों; ख़िदमतगुज़ार: सेवा करते रहने वाला; यक़ीन: विश्वास; शाहे-वक़्त: वर्त्तमान शासक; रेज़:-ए-किरदार: व्यक्तित्व का तंतु; दिले-ग़रीब: निर्बल  हृदय; ग़मगुसार: दुःख जानने वाला; मानी-ए-हुस्न: सौन्दर्य का अर्थ; 
फ़क्त: मात्र; जनाब: महोदय, श्रीमान; उम्मीदवार: अभिलाषी; अदब: संस्कार, साहित्य; अदीब: साहित्यकार; अना: अहं । 


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