इश्क़ की बात मत कीजिए
ये ख़ुराफ़ात मत कीजिए
'कौन हैं' 'किसलिए आए हैं'
यूं सवालात मत कीजिए
वस्ल का हौसला ही न हो
तो मुलाक़ात मत कीजिए
दोस्त हैं, दोस्ती ही रहे
कुछ इज़ाफ़ात मत कीजिए
रूह पर बार बनने लगें
वो इनायात मत कीजिए
हम कहां, शाहे-वहशत कहां
फ़ालतू बात मत कीजिए
लीजिए, आ गए रू-ब-रू
अब मुनाजात मत कीजिए
ज़लज़लों से ढहे शह्र में
या ख़ुदा ! रात मत कीजिए !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ख़ुराफ़ात: उपद्रव; सवालात: प्रश्न (बहु.); वस्ल: मिलन; हौसला: साहस, मनोबल; इज़ाफ़ात: अभिवृद्धियां; बार: बोझ, भार; इनायात: कृपाएं, देन; शाहे-वहशत: वन्य मनोवृत्ति का राजा; फ़ालतू: निरर्थक;
रू-ब-रू: प्रत्यक्ष, मुखामुख; मुनाजात: स्तुति-गान; ज़लज़लों: भूकंपों ।
ये ख़ुराफ़ात मत कीजिए
'कौन हैं' 'किसलिए आए हैं'
यूं सवालात मत कीजिए
वस्ल का हौसला ही न हो
तो मुलाक़ात मत कीजिए
दोस्त हैं, दोस्ती ही रहे
कुछ इज़ाफ़ात मत कीजिए
रूह पर बार बनने लगें
वो इनायात मत कीजिए
हम कहां, शाहे-वहशत कहां
फ़ालतू बात मत कीजिए
लीजिए, आ गए रू-ब-रू
अब मुनाजात मत कीजिए
ज़लज़लों से ढहे शह्र में
या ख़ुदा ! रात मत कीजिए !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ख़ुराफ़ात: उपद्रव; सवालात: प्रश्न (बहु.); वस्ल: मिलन; हौसला: साहस, मनोबल; इज़ाफ़ात: अभिवृद्धियां; बार: बोझ, भार; इनायात: कृपाएं, देन; शाहे-वहशत: वन्य मनोवृत्ति का राजा; फ़ालतू: निरर्थक;
रू-ब-रू: प्रत्यक्ष, मुखामुख; मुनाजात: स्तुति-गान; ज़लज़लों: भूकंपों ।
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