ख़ुदा का डर दिखा कर रिंदगी को ख़ाक कर डाला
दयारे-मैकदा को शैख़ ने नापाक कर डाला
कहां वो आईने के सामने भी सर झुकाते थे
कहां बस एक सोहबत ने उन्हें बेबाक कर डाला
कहा था दोस्तों ने यार का चेहरा दिखाने को
सुबूते-इश्क़ में सीना किसी ने चाक कर डाला
किसी ग़ुस्ताख़ मौसम ने बहारों से दग़ा की है
हवाओं ने चमन की रूह को ख़ाशाक कर डाला
कहीं मंहगाई का मातम कहीं ईमान की ईज़ा
फ़रेबे-शाह ने हर शख़्स को चालाक कर डाला
कभी देखे किसी ने आंख में आंसू परिंदों के
किसी सय्याद ने परवाज़ को ग़मनाक कर डाला
कहां से ताब लाए वो तुम्हारे नूर की या रब
शराबे-शौक़ ने जिसका जिगर कावाक कर डाला !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: रिंदगी: मद्यपान की प्रवृत्ति, ललक; ख़ाक: राख़, भस्म; दयारे-मैकदा: मदिरापान का पवित्र स्थान; शैख़: धर्मोपदेशक; नापाक: अपवित्र; सोहबत: संगति, मिलन; बेबाक: निर्भय,निर्लज्ज; सुबूते-इश्क़: प्रेम का प्रमाण; सीना: वक्ष-स्थल; चाक: चीरना; ग़ुस्ताख़: उद्दंड; दग़ा: छल; चमन: उपवन; रूह: आत्मा; ख़ाशाक: कूड़ा, व्यर्थ, निकृष्ट; मातम: शोक; ईमान की ईज़ा: धर्म-संकट; फ़रेबे-शाह: शासक का छल; शख़्स: व्यक्ति; परिंदों: पक्षियों; सय्याद: बहेलिया; परवाज़: उड़ान; ग़मनाक: शोकपूर्ण; ताब: धैर्य; नूर: प्रकाश; या रब : हे प्रभु; शराबे-शौक़: इच्छाओं की मदिरा; जिगर: यकृत, आत्म-बल; कावाक: खोखला, तत्व-विहीन।
दयारे-मैकदा को शैख़ ने नापाक कर डाला
कहां वो आईने के सामने भी सर झुकाते थे
कहां बस एक सोहबत ने उन्हें बेबाक कर डाला
कहा था दोस्तों ने यार का चेहरा दिखाने को
सुबूते-इश्क़ में सीना किसी ने चाक कर डाला
किसी ग़ुस्ताख़ मौसम ने बहारों से दग़ा की है
हवाओं ने चमन की रूह को ख़ाशाक कर डाला
कहीं मंहगाई का मातम कहीं ईमान की ईज़ा
फ़रेबे-शाह ने हर शख़्स को चालाक कर डाला
कभी देखे किसी ने आंख में आंसू परिंदों के
किसी सय्याद ने परवाज़ को ग़मनाक कर डाला
कहां से ताब लाए वो तुम्हारे नूर की या रब
शराबे-शौक़ ने जिसका जिगर कावाक कर डाला !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: रिंदगी: मद्यपान की प्रवृत्ति, ललक; ख़ाक: राख़, भस्म; दयारे-मैकदा: मदिरापान का पवित्र स्थान; शैख़: धर्मोपदेशक; नापाक: अपवित्र; सोहबत: संगति, मिलन; बेबाक: निर्भय,निर्लज्ज; सुबूते-इश्क़: प्रेम का प्रमाण; सीना: वक्ष-स्थल; चाक: चीरना; ग़ुस्ताख़: उद्दंड; दग़ा: छल; चमन: उपवन; रूह: आत्मा; ख़ाशाक: कूड़ा, व्यर्थ, निकृष्ट; मातम: शोक; ईमान की ईज़ा: धर्म-संकट; फ़रेबे-शाह: शासक का छल; शख़्स: व्यक्ति; परिंदों: पक्षियों; सय्याद: बहेलिया; परवाज़: उड़ान; ग़मनाक: शोकपूर्ण; ताब: धैर्य; नूर: प्रकाश; या रब : हे प्रभु; शराबे-शौक़: इच्छाओं की मदिरा; जिगर: यकृत, आत्म-बल; कावाक: खोखला, तत्व-विहीन।
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