आदाब अर्ज़, दोस्तों !
आज 'साझा आसमान' की 500 वीं ग़ज़ल आपकी ख़िदमत में पेश कर रहा हूं। इस मुक़ाम तक पहुंचना आपके त'अव्वुन और मोहब्बत के बिना मुमकिन नहीं था।
तहे-दिल से, आप सभी क़ारीन का शुक्रिया, मेहरबानी, करम, नवाज़िश...
ग़ज़ल पेश है:
दोस्तों को भुलाना बुरी बात है
राह में छोड़ जाना बुरी बात है
ख़्वाब झूठे दिखाना बुरी बात है
ख़ूने-दहक़ां जलाना बुरी बात है
वक़्त यूं तो हमें आप देते नहीं
ख़्वाब में भी न आना बुरी बात है
अर्श पर आशिक़ों को चढ़ाना ग़लत
फिर ज़मीं पर गिराना बुरी बात है
आपकी हर शरारत हसीं ही सही
हर किसी को सताना बुरी बात है
तोड़ना दिल अगर आपका शौक़ है
दर्द से छटपटाना बुरी बात है
शाह है शख़्स वो देवता तो नहीं
बेसबब सर झुकाना बुरी बात है
शौक़ से जाइए घर ख़ुदा के मगर
लौट कर फिर न आना बुरी बात है !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ख़ूने-दहक़ां: किसान/मज़दूर का रक्त; अर्श: आकाश; शख़्स: व्यक्ति; बेसबब: अकारण ।
आज 'साझा आसमान' की 500 वीं ग़ज़ल आपकी ख़िदमत में पेश कर रहा हूं। इस मुक़ाम तक पहुंचना आपके त'अव्वुन और मोहब्बत के बिना मुमकिन नहीं था।
तहे-दिल से, आप सभी क़ारीन का शुक्रिया, मेहरबानी, करम, नवाज़िश...
ग़ज़ल पेश है:
दोस्तों को भुलाना बुरी बात है
राह में छोड़ जाना बुरी बात है
ख़्वाब झूठे दिखाना बुरी बात है
ख़ूने-दहक़ां जलाना बुरी बात है
वक़्त यूं तो हमें आप देते नहीं
ख़्वाब में भी न आना बुरी बात है
अर्श पर आशिक़ों को चढ़ाना ग़लत
फिर ज़मीं पर गिराना बुरी बात है
आपकी हर शरारत हसीं ही सही
हर किसी को सताना बुरी बात है
तोड़ना दिल अगर आपका शौक़ है
दर्द से छटपटाना बुरी बात है
शाह है शख़्स वो देवता तो नहीं
बेसबब सर झुकाना बुरी बात है
शौक़ से जाइए घर ख़ुदा के मगर
लौट कर फिर न आना बुरी बात है !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ख़ूने-दहक़ां: किसान/मज़दूर का रक्त; अर्श: आकाश; शख़्स: व्यक्ति; बेसबब: अकारण ।
बहुत खूब
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