वो अगर दोस्त कह गया होता
आपका अज़्म रह गया होता
ख़ून होता कहीं मिरे दिल में
चश्मे-नाज़ुक से बह गया होता
क़ैस ख़ुद्दार था मिरी तरहा
और भी ज़ुल्म सह गया होता
आप गर ख़्वाब में नहीं आते
दर्द क्या इस तरह गया होता
शाह तक़दीर का सिकंदर है
वर्न: आहों से ढह गया होता
शाह दुश्मन उसे समझ लेता
जो हमारी जगह गया होता
तूर पर दीद हो गई होती
तू अगर हर सुबह गया होता !
(2015)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: अज़्म: सम्मान, प्रतिष्ठा; मिरे: मेरे; चश्मे-नाज़ुक: कोमल/भावुक नयन; क़ैस: मजनूं; ख़ुद्दार: स्वाभिमानी; मिरी तरहा: मेरी भांति; ज़ुल्म: अत्याचार; वर्न: : अन्यथा; तूर: मिस्र का एक मिथकीय पर्वत जहां हज़रत मूसा अ.स. को ईश्वर की झलक दिखाई दी थी; दीद: दर्शन।
बहुत ही उम्दा...
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