शायर था, दीवाना था
छोड़ो जी, अफ़साना था
तूफ़ानों से क्या शिकवा
फ़ितरत में टकराना था
दानिश्ता दिल दे बैठे
आख़िर क़र्ज़ चुकाना था
सोचो, तो मजबूरी थी
समझो, तो याराना था
ख़ूब लड़े, जीते-हारे
मक़सद जी बहलाना था
ख़ामोशी से टूट गया
शायद ख़्वाब सुहाना था
रब से कैसी उम्मीदें
क्या काफ़िर कहलाना था ?!
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: दीवाना: उन्मत्त; अफ़साना: गल्प, कहानी; शिकवा: आपत्ति; फ़ितरत: स्वभाव; दानिश्ता: जान-बूझ कर;
मक़सद: उद्देश्य; ख़ामोशी: शांति; रब: प्रभु; काफ़िर: नास्तिक ।
छोड़ो जी, अफ़साना था
तूफ़ानों से क्या शिकवा
फ़ितरत में टकराना था
दानिश्ता दिल दे बैठे
आख़िर क़र्ज़ चुकाना था
सोचो, तो मजबूरी थी
समझो, तो याराना था
ख़ूब लड़े, जीते-हारे
मक़सद जी बहलाना था
ख़ामोशी से टूट गया
शायद ख़्वाब सुहाना था
रब से कैसी उम्मीदें
क्या काफ़िर कहलाना था ?!
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: दीवाना: उन्मत्त; अफ़साना: गल्प, कहानी; शिकवा: आपत्ति; फ़ितरत: स्वभाव; दानिश्ता: जान-बूझ कर;
मक़सद: उद्देश्य; ख़ामोशी: शांति; रब: प्रभु; काफ़िर: नास्तिक ।
सुंदर अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंhttp://prathamprayaas.blogspot.in/- बिना हाथों की पहली महिला पायलेट – “जेसिका कॉक्स”
हमेशा की तरह...लाजवाब शेर...सुन्दर ग़ज़ल...
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