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गुरुवार, 1 जनवरी 2015

ये: भगवा लबादे...

शहर  के  इरादे  ग़लत  तो  नहीं  हैं  ?
कहीं  इश्क़ज़ादे  ग़लत  तो  नहीं  हैं  ?

बयाज़े-नज़र  में  बयां  कुछ  नहीं  है
ये:  सफ़हात  सादे  ग़लत  तो  नहीं  हैं  ?

यक़ीं  है  हमें  पर  तसल्ली  नहीं  है
ये:  पुरज़ोर  वादे  ग़लत तो  नहीं  हैं  ?

दिए   जा  रहे  हैं  जहां   को  नसीहत
ये:  भगवा  लबादे  ग़लत  तो  नहीं  हैं  ?

जहां   शाह  कह  दे  वहीं   जान  दे  दें
ये:  मजबूर  प्यादे  ग़लत  तो  नहीं  हैं ?

                                                                     (2015)

                                                            -सुरेश  स्वप्निल

शब्दार्थ: इरादे: मंतव्य; इश्क़ज़ादे: प्रेम-संतान (व्यंगार्थ); बयाज़े-नज़र: दृष्टि-दैनंदिनी; बयां: वक्तव्य; सफ़हात: पृष्ठ (बहुव.); यक़ीं: विश्वास; तसल्ली: आश्वस्ति; पुरज़ोर: बलीकृत; नसीहत: उपदेश, शिक्षा; लबादे: लंबे वस्त्र; मजबूर: विवश; प्यादे: पैदल सैनिक । 

2 टिप्‍पणियां:

  1. सार्थक प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (03-01-2015) को "नया साल कुछ नये सवाल" (चर्चा-1847) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    नव वर्ष-2015 आपके जीवन में
    ढेर सारी खुशियों के लेकर आये
    इसी कामना के साथ...
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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