हम जब भी हारे, मौसम से हारे हैं
बिछड़े अपनों के मातम से हारे हैं
सहमे-सहमे से लगते हैं दरवाज़े
मेहमानों के रंजो-ग़म से हारे हैं
गुलदस्तों से, पुरसिश से, हमदर्दी से
दिल के ज़ख्म कभी मरहम से हारे हैं ?
अपने-अपने क़िस्से हैं रुसवाई के
हम भी तो अक्सर हमदम से हारे हैं !
गुमगश्ता हैं ख़्वाब सफ़र की गर्दिश में
तक़दीरों के पेचो - ख़म से हारे हैं
कितने ही सरमायादारों के लश्कर
मेहनतकश हाथों के दम से हारे हैं
ताजिर आदमख़ोर लहू पी जाते हैं
ग़ुरबा इस क़ातिल आलम से हारे हैं !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मातम: शोक; रंजो-ग़म: खेद और दुःख; पुरसिश: पूछताछ; हमदर्दी: सहानुभूति; रुसवाई: अपमान; हमदम: साथी;
गुमगश्ता: भटके हुए; गर्दिश: भटकाव; पेचो - ख़म: मोड़ और जटिलता; सरमायादारों: पूंजीपतियों; लश्कर: सेनाएं;
ताजिर: व्यापारी; आदमख़ोर: नरभक्षी; ग़ुरबा: निर्धन (बहुव.); आलम: परिस्थिति ।
बिछड़े अपनों के मातम से हारे हैं
सहमे-सहमे से लगते हैं दरवाज़े
मेहमानों के रंजो-ग़म से हारे हैं
गुलदस्तों से, पुरसिश से, हमदर्दी से
दिल के ज़ख्म कभी मरहम से हारे हैं ?
अपने-अपने क़िस्से हैं रुसवाई के
हम भी तो अक्सर हमदम से हारे हैं !
गुमगश्ता हैं ख़्वाब सफ़र की गर्दिश में
तक़दीरों के पेचो - ख़म से हारे हैं
कितने ही सरमायादारों के लश्कर
मेहनतकश हाथों के दम से हारे हैं
ताजिर आदमख़ोर लहू पी जाते हैं
ग़ुरबा इस क़ातिल आलम से हारे हैं !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मातम: शोक; रंजो-ग़म: खेद और दुःख; पुरसिश: पूछताछ; हमदर्दी: सहानुभूति; रुसवाई: अपमान; हमदम: साथी;
गुमगश्ता: भटके हुए; गर्दिश: भटकाव; पेचो - ख़म: मोड़ और जटिलता; सरमायादारों: पूंजीपतियों; लश्कर: सेनाएं;
ताजिर: व्यापारी; आदमख़ोर: नरभक्षी; ग़ुरबा: निर्धन (बहुव.); आलम: परिस्थिति ।
लाजवाब...शब्दार्थ ज़रूरी हैं हम जैसों के लिये...
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