क़सम ले लो अगर हमने ख़ुदा को आज़माया हो
कि मन्नत के लिए ही जो कहीं पर सर झुकाया हो
अमां, मन्हूसियत छोड़ो, ज़रा-सा मुस्कुराओ भी
तुम्हीं वाहिद नहीं जिसका सबा ने दिल चुराया हो
ये मामूली घरौंदा, रिज़्क़, दस्तरख़्वान ये अपना
ख़ुदा ग़ारत करे जो बिन पसीने के कमाया हो
हमारा काम है तारीकियों से मोर्चा लेना
हमें सूली चढ़ा दें गर किसी का घर जलाया हो
हमीं ने ही उसे बदला, हमें उसने नहीं बदला
भले ही वक़्त ने हमको उठाया या गिराया हो
हमारा सर झुका है दोस्तों के सामने हर दम
वफ़ा की राह में जो दिल कभी भी डगमगाया हो
अभी से कर रहे हैं आप तैयारी जनाज़े की
कि जैसे आज ही हमको ख़ुदा ने घर बुलाया हो !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मन्नत: मान्यता; अमां: अजी, अनौपचारिक संबोधन; मन्हूसियत: anisht
कि मन्नत के लिए ही जो कहीं पर सर झुकाया हो
अमां, मन्हूसियत छोड़ो, ज़रा-सा मुस्कुराओ भी
तुम्हीं वाहिद नहीं जिसका सबा ने दिल चुराया हो
ये मामूली घरौंदा, रिज़्क़, दस्तरख़्वान ये अपना
ख़ुदा ग़ारत करे जो बिन पसीने के कमाया हो
हमारा काम है तारीकियों से मोर्चा लेना
हमें सूली चढ़ा दें गर किसी का घर जलाया हो
हमीं ने ही उसे बदला, हमें उसने नहीं बदला
भले ही वक़्त ने हमको उठाया या गिराया हो
हमारा सर झुका है दोस्तों के सामने हर दम
वफ़ा की राह में जो दिल कभी भी डगमगाया हो
अभी से कर रहे हैं आप तैयारी जनाज़े की
कि जैसे आज ही हमको ख़ुदा ने घर बुलाया हो !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मन्नत: मान्यता; अमां: अजी, अनौपचारिक संबोधन; मन्हूसियत: anisht
सुन्दर प्रस्तुति...बहुत खूब...
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