जब कोई ख़्वाब निगाहों में संवर आता है
ख़ुश्क होठों पे तेरा नक़्श उभर आता है
चांद गुस्ताख़ परिंदे की तरह उड़ता है
और हर रात मेरी छत पे उतर आता है
ये ज़ईफ़ी की सज़ा है कि दौरे-कमज़र्फ़ी
जो भी आता है वो मानिंदे-ख़बर आता है
शाह करता है ख़ता एक किसी लम्हे में
सात पुश्तों पे गुनाहों का असर आता है
इल्मो-फ़न से परे, एहसासे-ज़िंदगी है तू
और एहसास कभी ज़ेरे-बहर आता है ?
अलविदा कहके निकल जाएंगे ज़माने से
हर्फ़ ईमां पे किसी रोज़ अगर आता है
तेरे वजूद तलक मेरी नज़र की हद है
और ताहद्दे-नज़र तू ही नज़र आता है !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ख़ुश्क: सूखे; नक़्श: चिह्न, खुदा हुआ चिह्न; गुस्ताख़ परिंदे: दुस्साहसी पक्षी; ज़ईफ़ी: वृद्धावस्था; दौरे-कमज़र्फ़ी: ओछेपन का युग; मानिंदे-ख़बर: समाचार की भांति; ख़ता: अपराध; लम्हे: क्षण; पुश्तों: पीढ़ियों; गुनाहों: अपराधों; इल्मो-फ़न: कला-कौशल;
एहसासे-ज़िंदगी: जीवनानुभूति; ज़ेरे-बहर: छंद के अधीन; हर्फ़: दोष, आरोप; ईमां: आस्था; वजूद तलक: अस्तित्व तक; हद: सीमा; ताहद्दे-नज़र: दृष्टि की सीमा तक।
ख़ुश्क होठों पे तेरा नक़्श उभर आता है
चांद गुस्ताख़ परिंदे की तरह उड़ता है
और हर रात मेरी छत पे उतर आता है
ये ज़ईफ़ी की सज़ा है कि दौरे-कमज़र्फ़ी
जो भी आता है वो मानिंदे-ख़बर आता है
शाह करता है ख़ता एक किसी लम्हे में
सात पुश्तों पे गुनाहों का असर आता है
इल्मो-फ़न से परे, एहसासे-ज़िंदगी है तू
और एहसास कभी ज़ेरे-बहर आता है ?
अलविदा कहके निकल जाएंगे ज़माने से
हर्फ़ ईमां पे किसी रोज़ अगर आता है
तेरे वजूद तलक मेरी नज़र की हद है
और ताहद्दे-नज़र तू ही नज़र आता है !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ख़ुश्क: सूखे; नक़्श: चिह्न, खुदा हुआ चिह्न; गुस्ताख़ परिंदे: दुस्साहसी पक्षी; ज़ईफ़ी: वृद्धावस्था; दौरे-कमज़र्फ़ी: ओछेपन का युग; मानिंदे-ख़बर: समाचार की भांति; ख़ता: अपराध; लम्हे: क्षण; पुश्तों: पीढ़ियों; गुनाहों: अपराधों; इल्मो-फ़न: कला-कौशल;
एहसासे-ज़िंदगी: जीवनानुभूति; ज़ेरे-बहर: छंद के अधीन; हर्फ़: दोष, आरोप; ईमां: आस्था; वजूद तलक: अस्तित्व तक; हद: सीमा; ताहद्दे-नज़र: दृष्टि की सीमा तक।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शनिवार 06 सितम्बर 2014 को लिंक की जाएगी........
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (06-09-2014) को "एक दिन शिक्षक होने का अहसास" (चर्चा मंच 1728) पर भी होगी।
--
सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन को नमन करते हुए,
चर्चा मंच के सभी पाठकों को शिक्षक दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह हर शेर मुकम्मल । बेहतरीन गज़ल ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !वाह
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