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गुरुवार, 25 सितंबर 2014

दिलनवाज़ी के लिए...

ख़ुल्द  में  क्या-क्या  मिलेगा,  साथ  चल  कर  देख  लें
अस्लियत  क्या  है  ख़ुदा  की,  आंख  मल  कर  देख  लें

हारने    या     जीतने    में     हौसले     का     फ़र्क़     है
गिर  गए  तो  हर्ज़  क्या  है,  फिर  संभल  कर  देख  लें

ख़ाकसारी   क्या    बुरी  है     नेक  मक़सद    के   लिए
आशिक़ी  में    अश्क  की   मानिंद    ढल  कर  देख  लें

चांद    शायद    रो   रहा   है    याद    करके     आपको
दिलनवाज़ी   के  लिए   छत  पर   टहल  कर  देख  लें

हर्फ़   ईमां   पर     लगाना    दुश्मनों    की     चाल  है
हो  शुब्हा  तो  आप  हमसे  दिल  बदल  कर  देख  लें

भाव   आटे-दाल   का    क्या   है,   समझने   के  लिए
मुफ़लिसी  की  आग  में  कुछ  रोज़  जल  कर  देख  लें

आपकी      जल्वागरी   के      मुंतज़िर  हैं    दो-जहां
झूठ  समझें  तो  ज़रा  घर  से  निकल  कर  देख  लें !

                                                                                      (2014)

                                                                              -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: ख़ुल्द: स्वर्ग; अस्लियत: वास्तविकता; हौसले: उत्साह, प्रेरणा;  फ़र्क़: अंतर; हर्ज़: हानि; ख़ाकसारी: दीनता, अहंकार/गर्व का त्याग करना; नेक  मक़सद: शुभ उद्देश्य;  अश्क की मानिंद: अश्रु के समान; दिलनवाज़ी: मन रखना, सांत्वना; हर्फ़: दोष, कलंक; ईमां: आस्था; शुब्हा: संदेह; मुफ़लिसी: दरिद्रता; जल्वागरी: पूर्ण स्वरूप में प्रकट होना; मुंतज़िर: प्रतीक्षारत । 

4 टिप्‍पणियां:

  1. राम राम भाई जी।
    बहुत ही खूबसूरती से आपने लफ़्जों को पिरो दिया भाई जी, कि खुदा की भी दो सूरतें होती , एक जो हमें दिखती है और दूसरी वो जिसे देखने के लिए आंखें मलनी होती हैं....बहुत खूब।
    एक और बात कि आप साथ ही साथ शब्‍दों के अर्थ भी बताते हैं....बहुत जरूरी हैं।

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  2. दिलनवाज़ी का मतलब क्या है जी?

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