वो हमें अच्छी तरह पहचानता है
मानि-ए-वुस'अत समंदर जानता है
राह आसां छोड़ कर रूहानियत की
ख़ाक दर-दर की दिवाना छानता है
मै बुरी शै है, हमें भी इल्म है ये
ज़ाहिदों ! दिल कब नसीहत मानता है ?
लद गए दिन अब तुम्हारी शायरी के
कौन अब ग़ालिब, तुम्हें पहचानता है ?
क्या उसे दिल खोल कर दिखलाइएगा
गर ख़ुदा है तो हक़ीक़त जानता है !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मानि-ए-वुस'अत: विस्तार का अर्थ; रूहानियत: आध्यात्म; मै: मदिरा; शै: वस्तु; इल्म: बोध; ज़ाहिदों: धर्मोपदेशकों; नसीहत: सीख; ग़ालिब: हज़रत मिर्ज़ा ग़ालिब, उर्दू के महान शायर; गर: यदि; हक़ीक़त: वास्तविकता।
मानि-ए-वुस'अत समंदर जानता है
राह आसां छोड़ कर रूहानियत की
ख़ाक दर-दर की दिवाना छानता है
मै बुरी शै है, हमें भी इल्म है ये
ज़ाहिदों ! दिल कब नसीहत मानता है ?
लद गए दिन अब तुम्हारी शायरी के
कौन अब ग़ालिब, तुम्हें पहचानता है ?
क्या उसे दिल खोल कर दिखलाइएगा
गर ख़ुदा है तो हक़ीक़त जानता है !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मानि-ए-वुस'अत: विस्तार का अर्थ; रूहानियत: आध्यात्म; मै: मदिरा; शै: वस्तु; इल्म: बोध; ज़ाहिदों: धर्मोपदेशकों; नसीहत: सीख; ग़ालिब: हज़रत मिर्ज़ा ग़ालिब, उर्दू के महान शायर; गर: यदि; हक़ीक़त: वास्तविकता।
बेहतरीन ग़ज़ल...
जवाब देंहटाएंबहुत ही बेहतरीन , पढ़कर आनंद आ गया सुरेश भाई धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
सुंदर प्रस्तुति , आप की ये रचना चर्चामंच के लिए चुनी गई है , सोमवार दिनांक - 18 . 8 . 2014 को आपकी रचना का लिंक चर्चामंच पर होगा , कृपया पधारें धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंसुन्दर गज़ल
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर
जवाब देंहटाएंवाह बेहतरीन ग़ज़ल
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