गुनाहगारे-मुहब्बत को क्या सज़ा दीजे
गुनाह ख़ास नहीं, ज़ेह्न से मिटा दीजे
तमाम लोग बैठते हैं आपके घर में
हमीं क़ुबूल नहीं, ठीक है, उठा दीजे
मरीज़ ला-इलाज है सनमपरस्ती का
दवा नहीं, ग़रीब को फ़क़त दुआ दीजे
दिले-रक़ीब बदल जाए तो बुरा क्या है
गले लगा के ईद पर गिले भुला दीजे
ख़राब दौर में क़ायम दुआ-सलाम रहे
ज़रा-सी रस्म है, हो जाए तो निभा दीजे
हमें उम्मीद नहीं शाह से वफ़ाओं की
मगर ये: ज़ुल्म है कि रात-दिन दग़ा दीजे
ख़ुदा निगाह करे हाले-तिफ़्ले -ग़ाज़ा पर
नमाज़े-शुक्र में अल्फ़ाज़ कुछ बढ़ा दीजे !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: गुनाहगार: अपराधी; ज़ेह्न: -मस्तिष्क; क़ुबूल: स्वीकार; सनमपरस्ती: प्रियतम-पूजा; फ़क़त: मात्र; दिले-रक़ीब: प्रतिद्वंद्वी का हृदय; दौर: समय-चक्र; वफ़ा: निर्वाह; दग़ा: छल; हाले-तिफ़्ले -ग़ाज़ा: फिलिस्तीनियों के अंतिम आश्रय-स्थल ग़ाज़ा-पट्टी में रहने वाले बच्चों के हाल; नमाज़े-शुक्र: ईद उल फ़ित्र में अल्लाह का शुक्रिया अदा करने के लिए पढ़ी जाने वाली नमाज़; अल्फ़ाज़: शब्द (बहुव.) ।
गुनाह ख़ास नहीं, ज़ेह्न से मिटा दीजे
तमाम लोग बैठते हैं आपके घर में
हमीं क़ुबूल नहीं, ठीक है, उठा दीजे
मरीज़ ला-इलाज है सनमपरस्ती का
दवा नहीं, ग़रीब को फ़क़त दुआ दीजे
दिले-रक़ीब बदल जाए तो बुरा क्या है
गले लगा के ईद पर गिले भुला दीजे
ख़राब दौर में क़ायम दुआ-सलाम रहे
ज़रा-सी रस्म है, हो जाए तो निभा दीजे
हमें उम्मीद नहीं शाह से वफ़ाओं की
मगर ये: ज़ुल्म है कि रात-दिन दग़ा दीजे
ख़ुदा निगाह करे हाले-तिफ़्ले -ग़ाज़ा पर
नमाज़े-शुक्र में अल्फ़ाज़ कुछ बढ़ा दीजे !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: गुनाहगार: अपराधी; ज़ेह्न: -मस्तिष्क; क़ुबूल: स्वीकार; सनमपरस्ती: प्रियतम-पूजा; फ़क़त: मात्र; दिले-रक़ीब: प्रतिद्वंद्वी का हृदय; दौर: समय-चक्र; वफ़ा: निर्वाह; दग़ा: छल; हाले-तिफ़्ले -ग़ाज़ा: फिलिस्तीनियों के अंतिम आश्रय-स्थल ग़ाज़ा-पट्टी में रहने वाले बच्चों के हाल; नमाज़े-शुक्र: ईद उल फ़ित्र में अल्लाह का शुक्रिया अदा करने के लिए पढ़ी जाने वाली नमाज़; अल्फ़ाज़: शब्द (बहुव.) ।
बहुत प्यारी रचना , सुरेश भाई धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंInformation and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
बढिया।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंबेहतरीन है सुरेश जी!
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