फिर किसी रोज़ दवा दे देना
आज ज़ख़्मों को हवा दे देना
हस्बे-मामूल जफ़ा करते हो
हिज्र के रोज़ वफ़ा दे देना
हम बुरे वक़्त को निभा लेंगे
आप बस एक दुआ दे देना
हक़्क़े-माशूक़ आप ही जानें
ज़ीस्त देना कि क़ज़ा दे देना
क्या सियासत नहीं फ़रिश्तों की
हर सितमगर को रज़ा दे देना
रहबरे-क़ौम का तरीक़ा है
होश के वक़्त नशा दे देना
बात मक़्ते तलक पहुंच जाए
फिर सरे-आम सज़ा दे देना !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: हस्बे-मामूल: दैनंदिन का व्यवहार, नियम से; जफ़ा: अनीति, अत्याचार; हिज्र: विछोह; वफ़ा: आस्था; हक़्क़े-माशूक़: प्रिय का अधिकार; ज़ीस्त: जीवन; क़ज़ा: मृत्यु; फ़रिश्तों: देवताओं; सितमगर: अत्याचारी; रज़ा: अनुशंसा, अनुमति, स्वीकृति;
रहबरे-क़ौम: राष्ट्र-नायक; मक़्ता: ग़ज़ल का अंतिम शे'र, संपूर्णता।
आज ज़ख़्मों को हवा दे देना
हस्बे-मामूल जफ़ा करते हो
हिज्र के रोज़ वफ़ा दे देना
हम बुरे वक़्त को निभा लेंगे
आप बस एक दुआ दे देना
हक़्क़े-माशूक़ आप ही जानें
ज़ीस्त देना कि क़ज़ा दे देना
क्या सियासत नहीं फ़रिश्तों की
हर सितमगर को रज़ा दे देना
रहबरे-क़ौम का तरीक़ा है
होश के वक़्त नशा दे देना
बात मक़्ते तलक पहुंच जाए
फिर सरे-आम सज़ा दे देना !
(2014)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: हस्बे-मामूल: दैनंदिन का व्यवहार, नियम से; जफ़ा: अनीति, अत्याचार; हिज्र: विछोह; वफ़ा: आस्था; हक़्क़े-माशूक़: प्रिय का अधिकार; ज़ीस्त: जीवन; क़ज़ा: मृत्यु; फ़रिश्तों: देवताओं; सितमगर: अत्याचारी; रज़ा: अनुशंसा, अनुमति, स्वीकृति;
रहबरे-क़ौम: राष्ट्र-नायक; मक़्ता: ग़ज़ल का अंतिम शे'र, संपूर्णता।
रहबरे-क़ौम का तरीक़ा है
जवाब देंहटाएंहोश के वक़्त नशा दे देना
बहुत बारीक़ और उम्दा...
कल 12/04/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !