कोई हमको तरह नहीं देता
बज़्म में ही जगह नहीं देता
ख़ुश रहें लोग नींद आने तक
वक़्त ऐसी सुबह नहीं देता
ख़ूब तूने मिज़ाज पाया है
जान दे दो, निगह नहीं देता
लोग ख़ुदग़र्ज़ हो गए कितने
कोई दूजे को रह नहीं देता
शुक्र है, तुझमें ज़र्फ़ बाक़ी है
हमको दीवाना कह नहीं देता
सब रियाया की जां के पीछे हैं
शाह को कोई शह नहीं देता
क्यूं ख़ुदा हम कहें उसे कहिए
बंदगी की वजह नहीं देता !
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: तरह: उचित सम्मान, शे'र की पंक्ति; बज़्म: गोष्ठी; मिज़ाज: स्वभाव; निगह: दृष्टि, निगाह का संक्षिप्त;
ख़ुदग़र्ज़: स्वार्थी; रह: मार्ग, राह का संक्षेप; ज़र्फ़: गहराई, धैर्य; रियाया: जनता; शह: चुनौती; बंदगी: भक्ति।
बज़्म में ही जगह नहीं देता
ख़ुश रहें लोग नींद आने तक
वक़्त ऐसी सुबह नहीं देता
ख़ूब तूने मिज़ाज पाया है
जान दे दो, निगह नहीं देता
लोग ख़ुदग़र्ज़ हो गए कितने
कोई दूजे को रह नहीं देता
शुक्र है, तुझमें ज़र्फ़ बाक़ी है
हमको दीवाना कह नहीं देता
सब रियाया की जां के पीछे हैं
शाह को कोई शह नहीं देता
क्यूं ख़ुदा हम कहें उसे कहिए
बंदगी की वजह नहीं देता !
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: तरह: उचित सम्मान, शे'र की पंक्ति; बज़्म: गोष्ठी; मिज़ाज: स्वभाव; निगह: दृष्टि, निगाह का संक्षिप्त;
ख़ुदग़र्ज़: स्वार्थी; रह: मार्ग, राह का संक्षेप; ज़र्फ़: गहराई, धैर्य; रियाया: जनता; शह: चुनौती; बंदगी: भक्ति।
बेहतरीन ग़ज़ल....
जवाब देंहटाएंसुंदर !
जवाब देंहटाएं