दिल दें न दें हमें वो: ये: मुद्द'आ नहीं है
लेकिन नज़र में उनकी शायद वफ़ा नहीं है
क्या ढूंढते हैं यां-वां जो चाहिए बता दें
हालांकि हमको दिल का ख़ुद भी पता नहीं है
दिन-रात तड़पने की कोई वजह बताएं
यूं दरमियां हमारे कुछ भी हुआ नहीं है
है कौन दुश्मने-दिल अल्लाह देख लेगा
काफ़िर हैं जिनके लब पे कोई दुआ नहीं है
ऐसे भी लोग हम पर तन्क़ीद कर रहे हैं
इल्मे-सुख़न से जिनका कुछ वास्ता नहीं है
दिल तोड़ने का सबको हक़ तो ज़रूर है पर
इस जुर्म के मुताबिक़ कोई सज़ा नहीं है
आज़ारे-दिल के आगे अल्लाह भी है बेबस
पढ़ते हैं सब नमाज़ें लेकिन शिफ़ा नहीं है !
( 2014 )
- सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मुद्द'आ: बिंदु, विषय; वफ़ा: ईमानदारी; यां-वां: यहां-वहां; दरमियां: बीच में; हृदय का शत्रु; काफ़िर:नास्तिक; तन्क़ीद: टिप्पणी, समीक्षा; इल्मे-सुख़न: सृजन-कला; मुताबिक़: अनुरूप; आज़ारे-दिल: हृदय-रोग, प्रेम-रोग; शिफ़ा: आरोग्य्
लेकिन नज़र में उनकी शायद वफ़ा नहीं है
क्या ढूंढते हैं यां-वां जो चाहिए बता दें
हालांकि हमको दिल का ख़ुद भी पता नहीं है
दिन-रात तड़पने की कोई वजह बताएं
यूं दरमियां हमारे कुछ भी हुआ नहीं है
है कौन दुश्मने-दिल अल्लाह देख लेगा
काफ़िर हैं जिनके लब पे कोई दुआ नहीं है
ऐसे भी लोग हम पर तन्क़ीद कर रहे हैं
इल्मे-सुख़न से जिनका कुछ वास्ता नहीं है
दिल तोड़ने का सबको हक़ तो ज़रूर है पर
इस जुर्म के मुताबिक़ कोई सज़ा नहीं है
आज़ारे-दिल के आगे अल्लाह भी है बेबस
पढ़ते हैं सब नमाज़ें लेकिन शिफ़ा नहीं है !
( 2014 )
- सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मुद्द'आ: बिंदु, विषय; वफ़ा: ईमानदारी; यां-वां: यहां-वहां; दरमियां: बीच में; हृदय का शत्रु; काफ़िर:नास्तिक; तन्क़ीद: टिप्पणी, समीक्षा; इल्मे-सुख़न: सृजन-कला; मुताबिक़: अनुरूप; आज़ारे-दिल: हृदय-रोग, प्रेम-रोग; शिफ़ा: आरोग्य्
वाह !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना !
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