मेरे नसीब, मेरी मुफ़लिसी की बातों से
निकल गए हैं शबो-सहर मेरे हाथों से
हमारे हैं तो हर सफ़र में साथ-साथ चलें
सुकूं उन्हें न हमें चंद मुलाक़ातों से
मेरे मकां पे कोई रोज़ शम्'अ रखता है
के: हम न सोए न जागे हज़ार रातों से
कोई बताए कि हम किस पे ऐतबार करें
निकलते आ रहे हैं शैख़ ख़राबातों से
हुआ करें वो: शहंशाह बला से अपनी
ख़ुदा बचाए मेरे रिज़्क़ को ख़ैरातों से
ख़ुदा की ज़ात पे हम क्यूं न अक़ीदा रक्खें
पिघल गए हैं कई कोह मुनाजातों से !
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: नसीब: भाग्य, मुफ़लिसी: विपन्नता; रात्रि-प्रात:; सुकूं: संतोष; मकां: समाधि, क़ब्र, घर; ऐतबार: विश्वास; शैख़: धर्मोपदेशक; ख़राबातों: मदिरालयों; बला से: दुर्भाग्य से; रिज़्क़: दैनिक भोजन; ख़ैरातों: दान-दक्षिणाओं; ज़ात: अस्तित्व; अक़ीदा: आस्था; कोह: पर्वत; मुनाजातों: प्रार्थनाओं।
निकल गए हैं शबो-सहर मेरे हाथों से
हमारे हैं तो हर सफ़र में साथ-साथ चलें
सुकूं उन्हें न हमें चंद मुलाक़ातों से
मेरे मकां पे कोई रोज़ शम्'अ रखता है
के: हम न सोए न जागे हज़ार रातों से
कोई बताए कि हम किस पे ऐतबार करें
निकलते आ रहे हैं शैख़ ख़राबातों से
हुआ करें वो: शहंशाह बला से अपनी
ख़ुदा बचाए मेरे रिज़्क़ को ख़ैरातों से
ख़ुदा की ज़ात पे हम क्यूं न अक़ीदा रक्खें
पिघल गए हैं कई कोह मुनाजातों से !
( 2014 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: नसीब: भाग्य, मुफ़लिसी: विपन्नता; रात्रि-प्रात:; सुकूं: संतोष; मकां: समाधि, क़ब्र, घर; ऐतबार: विश्वास; शैख़: धर्मोपदेशक; ख़राबातों: मदिरालयों; बला से: दुर्भाग्य से; रिज़्क़: दैनिक भोजन; ख़ैरातों: दान-दक्षिणाओं; ज़ात: अस्तित्व; अक़ीदा: आस्था; कोह: पर्वत; मुनाजातों: प्रार्थनाओं।
आपकी लिखी रचना बुधवार 15/01/2014 को लिंक की जाएगी...............
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आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
सुंदर प्रस्तुति के लिये आभार आपका....
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