किसी के दिल को तबाह करके
न मुस्कुराओ गुनाह करके
चलो यह माना जफ़ा नहीं की
कहो ख़ुदा को गवाह करके
हमें फ़लक पर बिठा दिया है
सहर ने ज़ेरे-पनाह करके
न क़ाफ़िया न बहर मुकम्मल
मिलेगा क्या वाह वाह करके
किसी पे मिटना ख़ता नहीं है
चलो न नीची निगाह करके
किया है दुश्मन को आश्ना गर
दिखाइए अब निबाह करके
ख़ुदा को क्या मुंह दिखाएंगे वो:
जिए जो रू: को सियाह करके !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: जफ़ा: बेईमानी; फ़लक: आकाश; सहर: उषः काल; ज़ेरे-पनाह: शरणागत; क़ाफ़िया : शे'र की दूसरी पंक्ति में अंतिम से पूर्व का शब्द; बहर: छंद; मुकम्मल: परिपूर्ण; ख़ता : दोष, अपराध; आश्ना: मित्र,साथी; गर: यदि; रू:: आत्मा; सियाह: काला।
न मुस्कुराओ गुनाह करके
चलो यह माना जफ़ा नहीं की
कहो ख़ुदा को गवाह करके
हमें फ़लक पर बिठा दिया है
सहर ने ज़ेरे-पनाह करके
न क़ाफ़िया न बहर मुकम्मल
मिलेगा क्या वाह वाह करके
किसी पे मिटना ख़ता नहीं है
चलो न नीची निगाह करके
किया है दुश्मन को आश्ना गर
दिखाइए अब निबाह करके
ख़ुदा को क्या मुंह दिखाएंगे वो:
जिए जो रू: को सियाह करके !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: जफ़ा: बेईमानी; फ़लक: आकाश; सहर: उषः काल; ज़ेरे-पनाह: शरणागत; क़ाफ़िया : शे'र की दूसरी पंक्ति में अंतिम से पूर्व का शब्द; बहर: छंद; मुकम्मल: परिपूर्ण; ख़ता : दोष, अपराध; आश्ना: मित्र,साथी; गर: यदि; रू:: आत्मा; सियाह: काला।
वोह...साधू साधू..
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