जश्ने-जिस्मां की किसी दम जुस्तजू होती नहीं
ख़ाक दिल में रौशनी-ए-आरज़ू होती नहीं
यूं बहारें इस शहर में मुस्तक़िल रहने लगीं
क्यूं मगर बादे-सबा में रंगो-बू होती नहीं
अश्कबारी का इबादत से कोई रिश्त: नहीं
आबे-नमकीं से मुसलमां की वुज़ू होती नहीं
लो तुम्हारी ही सही हम भी मुसलमां हो गए
अब न कहियो के: हमारी आरज़ू होती नहीं
क्या मुअज़्ज़िन सो गया है ख़ुम्र पी के दैर में
जो जुहर तक भी सदा-ए-अल्लहू होती नहीं
देख ली हमने इबादत आपकी भी शैख़ जी
जिस्म सज्दे में पड़ा है रू: निगू होती नहीं
जब तलक थे आसमां पे रोज़ करते थे कलाम
सामने बैठे हैं अब वो: गुफ़्तगू होती नहीं !
(1996-'13)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: जश्ने-जिस्मां: शरीरोत्सव; दम: क्षण; जुस्तजू: खोज; ख़ाक: बुझा हुआ; रौशनी-ए-आरज़ू: इच्छाओं का प्रकाश; मुस्तक़िल: स्थायी रूप से; बादे-सबा: प्रभात समीर; रंगो-बू : रंग और सुगंध; अश्कबारी: रोना-धोना; इबादत: पूजा; आबे-नमकीं: नमकीन पानी, आंसू; मुसलमां: आस्तिक; वुज़ू: देह-शुद्धि; मुअज़्ज़िन: अज़ान देने वाला; ख़ुम्र: मद्य; दैर: मस्जिद; जुहर, जुह्र: दोपहर की नमाज़; सदा-ए-अल्लहू: ईश्वर की पुकार, अज़ान; शैख़: ढोंगी धर्म-भीरु; सज्दा:नतमस्तक प्रणाम; रू: : आत्मा; निगू: नत, झुकी हुई; कलाम:संवाद; गुफ़्तगू:वार्तालाप।
ख़ाक दिल में रौशनी-ए-आरज़ू होती नहीं
यूं बहारें इस शहर में मुस्तक़िल रहने लगीं
क्यूं मगर बादे-सबा में रंगो-बू होती नहीं
अश्कबारी का इबादत से कोई रिश्त: नहीं
आबे-नमकीं से मुसलमां की वुज़ू होती नहीं
लो तुम्हारी ही सही हम भी मुसलमां हो गए
अब न कहियो के: हमारी आरज़ू होती नहीं
क्या मुअज़्ज़िन सो गया है ख़ुम्र पी के दैर में
जो जुहर तक भी सदा-ए-अल्लहू होती नहीं
देख ली हमने इबादत आपकी भी शैख़ जी
जिस्म सज्दे में पड़ा है रू: निगू होती नहीं
जब तलक थे आसमां पे रोज़ करते थे कलाम
सामने बैठे हैं अब वो: गुफ़्तगू होती नहीं !
(1996-'13)
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: जश्ने-जिस्मां: शरीरोत्सव; दम: क्षण; जुस्तजू: खोज; ख़ाक: बुझा हुआ; रौशनी-ए-आरज़ू: इच्छाओं का प्रकाश; मुस्तक़िल: स्थायी रूप से; बादे-सबा: प्रभात समीर; रंगो-बू : रंग और सुगंध; अश्कबारी: रोना-धोना; इबादत: पूजा; आबे-नमकीं: नमकीन पानी, आंसू; मुसलमां: आस्तिक; वुज़ू: देह-शुद्धि; मुअज़्ज़िन: अज़ान देने वाला; ख़ुम्र: मद्य; दैर: मस्जिद; जुहर, जुह्र: दोपहर की नमाज़; सदा-ए-अल्लहू: ईश्वर की पुकार, अज़ान; शैख़: ढोंगी धर्म-भीरु; सज्दा:नतमस्तक प्रणाम; रू: : आत्मा; निगू: नत, झुकी हुई; कलाम:संवाद; गुफ़्तगू:वार्तालाप।
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