अल्फ़ाज़ में वो: बात नज़र आती नहीं हमें
राहत की नर्म रात नज़र आती नहीं हमें
हसरत से देखते हैं आजकल दरे-हबीब
उम्मीदे- मुलाक़ात नज़र आती नहीं हमें
मग़रिब हुई के: बुझ गए दिल के सभी चराग़
अब नूर की सौग़ात नज़र आती नहीं हमें
वो: सोज़े - आशनाई में भीगे हुए ख़याल
वो: बारिशे-जज़्बात नज़र आती नहीं हमें
इस दौरे-मुश्किलात की रुस्वाइयों से अब
आसां रहे - निजात नज़र आती नहीं हमें
लड़ते रहेंगे ज़ौरो - जब्र के निज़ाम से
जब तक के: तेरी मात नज़र आती नहीं हमें
मुद्दत से मुंतज़िर हैं कोहे-तूर पे मगर
जल्वों की करामात नज़र आती नहीं हमें !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: अल्फ़ाज़: शब्द (बहु.); दरे-हबीब: प्रिय का द्वार; उम्मीदे- मुलाक़ात: भेंट की आशा; मग़रिब: सूर्यास्त;
नूर की सौग़ात: प्रकाश का उपहार; सोज़े - आशनाई: स्नेह का माधुर्य; बारिशे-जज़्बात: भावनाओं की वर्षा;
दौरे-मुश्किलात: कठिनाइयों का समय; रुस्वाइयों: अपमानों; आसां रहे-निजात: मुक्ति का सरल मार्ग; ज़ौरो- जब्र: अत्याचार और बलात कृत्य; निज़ाम: शासन; मुंतज़िर: प्रतीक्षारत; कोहे-तूर: अंधकार का पर्वत; जल्वों की करामात: ( ईश्वर के ) दर्शन का चमत्कार।
राहत की नर्म रात नज़र आती नहीं हमें
हसरत से देखते हैं आजकल दरे-हबीब
उम्मीदे- मुलाक़ात नज़र आती नहीं हमें
मग़रिब हुई के: बुझ गए दिल के सभी चराग़
अब नूर की सौग़ात नज़र आती नहीं हमें
वो: सोज़े - आशनाई में भीगे हुए ख़याल
वो: बारिशे-जज़्बात नज़र आती नहीं हमें
इस दौरे-मुश्किलात की रुस्वाइयों से अब
आसां रहे - निजात नज़र आती नहीं हमें
लड़ते रहेंगे ज़ौरो - जब्र के निज़ाम से
जब तक के: तेरी मात नज़र आती नहीं हमें
मुद्दत से मुंतज़िर हैं कोहे-तूर पे मगर
जल्वों की करामात नज़र आती नहीं हमें !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: अल्फ़ाज़: शब्द (बहु.); दरे-हबीब: प्रिय का द्वार; उम्मीदे- मुलाक़ात: भेंट की आशा; मग़रिब: सूर्यास्त;
नूर की सौग़ात: प्रकाश का उपहार; सोज़े - आशनाई: स्नेह का माधुर्य; बारिशे-जज़्बात: भावनाओं की वर्षा;
दौरे-मुश्किलात: कठिनाइयों का समय; रुस्वाइयों: अपमानों; आसां रहे-निजात: मुक्ति का सरल मार्ग; ज़ौरो- जब्र: अत्याचार और बलात कृत्य; निज़ाम: शासन; मुंतज़िर: प्रतीक्षारत; कोहे-तूर: अंधकार का पर्वत; जल्वों की करामात: ( ईश्वर के ) दर्शन का चमत्कार।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें