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शुक्रवार, 22 नवंबर 2013

फ़िक्रे-दुनिया...!

बात     पूरी     अगर    न  हो  पाए
आज    शायद    सहर  न  हो  पाए

ख़्वाब  जो   साथ  छोड़  दें  अपना
रात  फिर   उम्र  भर   न   हो  पाए

बात  हो    इस  तरह    निगाहों  में
दुश्मनों  को    ख़बर     न  हो  पाए

इश्क़    करते    हुए    ख़याल   रहे
ज़िंदगी    ये:    ज़हर    न  हो  पाए

यार  की    नींद  में    पनाह  न  हो
ख़्वाब  यूं   शब-बदर   न  हो  पाए

अहले-ईमां  को  इश्क़  का  हक़  है
दिल   इधर  से  उधर   न  हो  पाए

फ़िक्रे-दुनिया  भी  कीजिए  लेकिन
जां  पे    बेजा  असर     न  हो  पाए

रूह    को     मग़फ़िरत    ज़रूरी  है
बस   ख़ुदा    बेख़बर    न  हो  पाए !

                                            (2013)

                                     -सुरेश  स्वप्निल

शब्दार्थ: ईमानदार, आस्थावान; फ़िक्रे-दुनिया: सांसारिक चिंता; रूह: आत्मा; मग़फ़िरत: मोक्ष।

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