जिसे फ़रेबे -जहां से गिला नहीं होता
वो: शख्स अपने-आप से ख़फ़ा नहीं होता
देख नासेह गरेबां में झांक कर अपने
वक़्त मुंसिफ़ है किसी का सगा नहीं होता
हर गुनहगार ज़माने से मुंह छुपाता है
जब तलक आग न हो तो धुंवा नहीं होता
शोर करता है वही दूर रह के मैदां से
जिसमें लड़ने का कोई माद्दा नहीं होता
झूठ-ओ-मक्र जो दिल में छुपाए रखता हो
ऐसे इंसान के हक़ में ख़ुदा नहीं होता
ये: सियासत है यहां काम क्या शरीफ़ों का
दूध का कोई यहां पर धुला नहीं होता
बात तब है के: जवां-उम्र में कीजे तौबा
मौत के बाद कोई रास्ता नहीं होता
अहले-ईमां ही सचाई की क़द्र करते हैं
बे-ईमानों का कोई फ़लसफ़ा नहीं होता !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: फ़रेबे -जहां: दुनिया के छल; गिला: शिकायत; नासेह: धार्मिक शिक्षा देने वाला; मुंसिफ़: न्यायकर्त्ता;
गुनहगार: अपराधी; माद्दा: शक्ति; मक्र: छद्म; अहले-ईमां: ईमानदार लोग; फ़लसफ़ा: दर्शन, सिद्धांत।
वो: शख्स अपने-आप से ख़फ़ा नहीं होता
देख नासेह गरेबां में झांक कर अपने
वक़्त मुंसिफ़ है किसी का सगा नहीं होता
हर गुनहगार ज़माने से मुंह छुपाता है
जब तलक आग न हो तो धुंवा नहीं होता
शोर करता है वही दूर रह के मैदां से
जिसमें लड़ने का कोई माद्दा नहीं होता
झूठ-ओ-मक्र जो दिल में छुपाए रखता हो
ऐसे इंसान के हक़ में ख़ुदा नहीं होता
ये: सियासत है यहां काम क्या शरीफ़ों का
दूध का कोई यहां पर धुला नहीं होता
बात तब है के: जवां-उम्र में कीजे तौबा
मौत के बाद कोई रास्ता नहीं होता
अहले-ईमां ही सचाई की क़द्र करते हैं
बे-ईमानों का कोई फ़लसफ़ा नहीं होता !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: फ़रेबे -जहां: दुनिया के छल; गिला: शिकायत; नासेह: धार्मिक शिक्षा देने वाला; मुंसिफ़: न्यायकर्त्ता;
गुनहगार: अपराधी; माद्दा: शक्ति; मक्र: छद्म; अहले-ईमां: ईमानदार लोग; फ़लसफ़ा: दर्शन, सिद्धांत।
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