क्या ख़बर किसकी दुआ लग जाए
यार को मर्ज़े-वफ़ा लग जाए
कौन बचता है घाट का घर का
जो ज़माने की हवा लग जाए
शायरी के सिवा पनाह नहीं
जो दिल पे संगे-जफ़ा लग जाए
हो शिफ़ा इश्क़ की हरारत से
शैख़ साहब की दवा लग जाए
जान बच जाए बेगुनाहों की
काश! क़ातिल को हया लग जाए
वो: तेरा अक्स लगेगा जिस दिन
चांद को रंगे-हिना लग जाए
नींद आए न तुझे भी या रब
क़ैस की आहो-सदा लग जाए !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मर्ज़े-वफ़ा: निर्वाह का रोग; पनाह: शरण; संगे-जफ़ा: बे-ईमानी/अन्याय का पत्थर; शिफ़ा: आरोग्य;
हरारत: गर्मी, बुख़ार; शैख़: धर्म-भीरु, मद्यपान-विरोधी;हया: लज्जा; अक्स: प्रतिबिम्ब; रंगे-हिना: मेंहदी का रंग;
क़ैस: लैला का प्रेमी, मजनूं, प्रेमोन्मादी; आहो-सदा: चीख़-पुकार।
यार को मर्ज़े-वफ़ा लग जाए
कौन बचता है घाट का घर का
जो ज़माने की हवा लग जाए
शायरी के सिवा पनाह नहीं
जो दिल पे संगे-जफ़ा लग जाए
हो शिफ़ा इश्क़ की हरारत से
शैख़ साहब की दवा लग जाए
जान बच जाए बेगुनाहों की
काश! क़ातिल को हया लग जाए
वो: तेरा अक्स लगेगा जिस दिन
चांद को रंगे-हिना लग जाए
नींद आए न तुझे भी या रब
क़ैस की आहो-सदा लग जाए !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मर्ज़े-वफ़ा: निर्वाह का रोग; पनाह: शरण; संगे-जफ़ा: बे-ईमानी/अन्याय का पत्थर; शिफ़ा: आरोग्य;
हरारत: गर्मी, बुख़ार; शैख़: धर्म-भीरु, मद्यपान-विरोधी;हया: लज्जा; अक्स: प्रतिबिम्ब; रंगे-हिना: मेंहदी का रंग;
क़ैस: लैला का प्रेमी, मजनूं, प्रेमोन्मादी; आहो-सदा: चीख़-पुकार।
आप की ये सुंदर रचना आने वाले सौमवार यानी 18/11/2013 को नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है... आप भी इस हलचल में सादर आमंत्रित है...
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ।
बहुत सुंदर रचना..
जवाब देंहटाएं