हमको तीरे-नज़र क़ुबूल नहीं
बेशऊरों का दर क़ुबूल नहीं
दुश्मने-हुस्न हम नहीं लेकिन
दिल पे बेजा असर क़ुबूल नहीं
अज़मते-मुल्क बेचने वालों
ये: नुक़तए-नज़र क़ुबूल नहीं
चंद सरमायदार की ख़ातिर
मुफ़लिसों पे क़हर क़ुबूल नहीं
कोई समझाओ इन दरिंदों को
नफ़रतों का ज़हर क़ुबूल नहीं
हमको दोज़ख़ क़ुबूल है लेकिन
शाह तेरा शहर क़ुबूल नहीं
इब्ने-हैदर को छीन ले जाए
हमको ऐसी सहर क़ुबूल नहीं
आज मातम हुसैन का होगा
ज़िक्रे-माहो-क़मर क़ुबूल नहीं !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ:
बेशऊरों का दर क़ुबूल नहीं
दुश्मने-हुस्न हम नहीं लेकिन
दिल पे बेजा असर क़ुबूल नहीं
अज़मते-मुल्क बेचने वालों
ये: नुक़तए-नज़र क़ुबूल नहीं
चंद सरमायदार की ख़ातिर
मुफ़लिसों पे क़हर क़ुबूल नहीं
कोई समझाओ इन दरिंदों को
नफ़रतों का ज़हर क़ुबूल नहीं
हमको दोज़ख़ क़ुबूल है लेकिन
शाह तेरा शहर क़ुबूल नहीं
इब्ने-हैदर को छीन ले जाए
हमको ऐसी सहर क़ुबूल नहीं
आज मातम हुसैन का होगा
ज़िक्रे-माहो-क़मर क़ुबूल नहीं !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ:
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