जन्नत से लौट आए तेरे एहतराम में
सौग़ाते-शबे-वस्ल मिले अब इनाम में
इस दौरे-मुफ़लिसी में आ रहे हैं वो: मेहमां
दीवाने हम हुए हैं इसी इंतज़ाम में
तौहीने-इश्क़ क्यूं न इसे मानिए जनाब
जो मुस्कुरा रहे हैं आप जवाबे-सलाम में
अब वो: भी समझ जाएं के: हम दर-बदर नहीं
भेजे हैं गुल हमें भी किसी ने पयाम में
ग़ाफ़िल है शाहे-हिन्द जिसे ये: ख़बर नहीं
दस्तार तार-तार है उसकी अवाम में
उस शाह को रैयत पे हुक़ूमत का हक़ नहीं
मरते हों तिफ़्ल भूख से जिसके निज़ाम में
इस दारे-सियासत की हक़ीक़त है बस यही
'उरियां खड़े हुए हैं सभी इस हमाम में !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: एहतराम: सम्मान; सौग़ाते-शबे-वस्ल: मिलन-निशा का उपहार; दौरे-मुफ़लिसी: निर्धनता-चक्र; तौहीने-इश्क़: प्रेम का अपमान; पयाम: प्रेम-सन्देश; ग़ाफ़िल: दिग्भ्रमित; दस्तार: पगडी; अवाम:जन-सामान्य; रैयत: शाषित; तिफ़्ल: शिशु; निज़ाम: शासन-व्यवस्था; दारे-सियासत: राजनैतिक संसद; हक़ीक़त: वास्तविकता; 'उरियां: निर्वस्त्र; हमाम: सार्वजनिक स्नानागार !
सौग़ाते-शबे-वस्ल मिले अब इनाम में
इस दौरे-मुफ़लिसी में आ रहे हैं वो: मेहमां
दीवाने हम हुए हैं इसी इंतज़ाम में
तौहीने-इश्क़ क्यूं न इसे मानिए जनाब
जो मुस्कुरा रहे हैं आप जवाबे-सलाम में
अब वो: भी समझ जाएं के: हम दर-बदर नहीं
भेजे हैं गुल हमें भी किसी ने पयाम में
ग़ाफ़िल है शाहे-हिन्द जिसे ये: ख़बर नहीं
दस्तार तार-तार है उसकी अवाम में
उस शाह को रैयत पे हुक़ूमत का हक़ नहीं
मरते हों तिफ़्ल भूख से जिसके निज़ाम में
इस दारे-सियासत की हक़ीक़त है बस यही
'उरियां खड़े हुए हैं सभी इस हमाम में !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: एहतराम: सम्मान; सौग़ाते-शबे-वस्ल: मिलन-निशा का उपहार; दौरे-मुफ़लिसी: निर्धनता-चक्र; तौहीने-इश्क़: प्रेम का अपमान; पयाम: प्रेम-सन्देश; ग़ाफ़िल: दिग्भ्रमित; दस्तार: पगडी; अवाम:जन-सामान्य; रैयत: शाषित; तिफ़्ल: शिशु; निज़ाम: शासन-व्यवस्था; दारे-सियासत: राजनैतिक संसद; हक़ीक़त: वास्तविकता; 'उरियां: निर्वस्त्र; हमाम: सार्वजनिक स्नानागार !
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