बड़े सुकूं से मेरा यार दिलो-जां मांगे
मगर ये: बात न हुई के: वो: ईमां मांगे
हमें हंसी न आएगी के: जब कोई क़ासिद
पयामे-यार से पहले कोई निशां मांगे
मेरी परवाज़ पे हंसते हैं जो जहां वाले
उन्हीं से आज मेरा अज़्म आस्मां मांगे
मेरे ख़यालो-ओ-तसव्वुर की हद नहीं कोई
मेरा वक़ार कई और भी जहां मांगे
हमारे इश्क़ की तौहीन और क्या होगी
ख़ुदा हमीं से बंदगी का इम्तेहां मांगे !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: सुकूं: शांति; ईमां: आस्था; क़ासिद: पत्र-वाहक; पयामे-यार: प्रेमी का संदेश, निशां: पहचान-चिह्न; परवाज़: उड़ान; जहां: दुनिया; अज़्म: अहम्मन्यता; आस्मां:आकाश; विचार और कल्पना-शक्ति; हद: सीमा; वक़ार: प्रतिष्ठा; जहां: ब्रह्माण्ड; तौहीन: अपमान; बंदगी: भक्ति।
मगर ये: बात न हुई के: वो: ईमां मांगे
हमें हंसी न आएगी के: जब कोई क़ासिद
पयामे-यार से पहले कोई निशां मांगे
मेरी परवाज़ पे हंसते हैं जो जहां वाले
उन्हीं से आज मेरा अज़्म आस्मां मांगे
मेरे ख़यालो-ओ-तसव्वुर की हद नहीं कोई
मेरा वक़ार कई और भी जहां मांगे
हमारे इश्क़ की तौहीन और क्या होगी
ख़ुदा हमीं से बंदगी का इम्तेहां मांगे !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: सुकूं: शांति; ईमां: आस्था; क़ासिद: पत्र-वाहक; पयामे-यार: प्रेमी का संदेश, निशां: पहचान-चिह्न; परवाज़: उड़ान; जहां: दुनिया; अज़्म: अहम्मन्यता; आस्मां:आकाश; विचार और कल्पना-शक्ति; हद: सीमा; वक़ार: प्रतिष्ठा; जहां: ब्रह्माण्ड; तौहीन: अपमान; बंदगी: भक्ति।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें