हो सके तो जहां को वफ़ा दीजिए
दुश्मनी ही सही पर निभा दीजिए
जो शिकायत है हमको बता दीजिए
ग़ैर के हाथ क्यूं मुद्द'आ दीजिए
चांद बे-मौत मर जाए न शर्म से
बेख़ुदी में न चिलमन उठा दीजिए
दौलते-हुस्न किसकी ज़रूरत नहीं
इसलिए क्या ख़ज़ाने लुटा दीजिए ?
उम्र तो इश्क़ का मुद्द'आ ही नहीं
क्यूं न सबको हक़ीक़त बता दीजिए
साहिबे-दिल हैं हम आप मलिकाए-दिल
दो-जहां में मुनादी करा दीजिए !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ:
दुश्मनी ही सही पर निभा दीजिए
जो शिकायत है हमको बता दीजिए
ग़ैर के हाथ क्यूं मुद्द'आ दीजिए
चांद बे-मौत मर जाए न शर्म से
बेख़ुदी में न चिलमन उठा दीजिए
दौलते-हुस्न किसकी ज़रूरत नहीं
इसलिए क्या ख़ज़ाने लुटा दीजिए ?
उम्र तो इश्क़ का मुद्द'आ ही नहीं
क्यूं न सबको हक़ीक़त बता दीजिए
साहिबे-दिल हैं हम आप मलिकाए-दिल
दो-जहां में मुनादी करा दीजिए !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ:
भाई जी गज़ल के कुछेक शेर तो बहुत ही कमाल के हैं...... बहुत ही उम्दा गज़ल लिखी है आपने !
जवाब देंहटाएं