सर उठाओ कभी मेरी ख़ातिर
मुस्कुराओ कभी मेरी ख़ातिर
ज़िंदगी बेमज़ा नहीं इतनी
दिल लगाओ कभी मेरी ख़ातिर
रास्तों में बहार बिखरी है
देख आओ कभी मेरी ख़ातिर
रंजो-ग़म दिल को तोड़ देते हैं
भूल जाओ कभी मेरी ख़ातिर
है तरन्नुम तुम्हारी आँखों में
गुनगुनाओ कभी मेरी ख़ातिर
लौट जाएं न बाम से ख़ुशियाँ
घर सजाओ कभी मेरी ख़ातिर
अश्क दिल का ग़ुरूर होते हैं
मत बहाओ कभी मेरी ख़ातिर
तोड़ कर बेबसी की दीवारें
ज़िद दिखाओ कभी मेरी ख़ातिर !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ:
मुस्कुराओ कभी मेरी ख़ातिर
ज़िंदगी बेमज़ा नहीं इतनी
दिल लगाओ कभी मेरी ख़ातिर
रास्तों में बहार बिखरी है
देख आओ कभी मेरी ख़ातिर
रंजो-ग़म दिल को तोड़ देते हैं
भूल जाओ कभी मेरी ख़ातिर
है तरन्नुम तुम्हारी आँखों में
गुनगुनाओ कभी मेरी ख़ातिर
लौट जाएं न बाम से ख़ुशियाँ
घर सजाओ कभी मेरी ख़ातिर
अश्क दिल का ग़ुरूर होते हैं
मत बहाओ कभी मेरी ख़ातिर
तोड़ कर बेबसी की दीवारें
ज़िद दिखाओ कभी मेरी ख़ातिर !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ:
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