हम अगर खुल के मुस्कुराते हैं
क्या बताएं के: क्या छुपाते हैं
दिल तो महफ़ूज़ रख नहीं पाए
दांव ईमान पे लगाते हैं
जो शबे-ग़म गुज़ार लेते हैं
अपनी तक़दीर ख़ुद बनाते हैं
मांगते हैं दुआ मुहब्बत की
मौत का दायरा बढ़ाते हैं
जब कभी दिल पे बात आती है
वो: हमें मुद्द'आ बनाते हैं
मश्वरा चाहिए मुहब्बत पे
मीरवाइज़ हमें बुलाते हैं
अर्श जब-जब फ़रेब देता है
ग़म हमें रास्ता दिखाते हैं !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: महफ़ूज़: सुरक्षित; ईमान: आस्था; शबे-ग़म: दुःख की रात्रि; मुद्द'आ: विषय; मश्वरा: परामर्श;
मीरवाइज़: प्रमुख धर्मोपदेशक; अर्श: आसमान, भाग्य।
क्या बताएं के: क्या छुपाते हैं
दिल तो महफ़ूज़ रख नहीं पाए
दांव ईमान पे लगाते हैं
जो शबे-ग़म गुज़ार लेते हैं
अपनी तक़दीर ख़ुद बनाते हैं
मांगते हैं दुआ मुहब्बत की
मौत का दायरा बढ़ाते हैं
जब कभी दिल पे बात आती है
वो: हमें मुद्द'आ बनाते हैं
मश्वरा चाहिए मुहब्बत पे
मीरवाइज़ हमें बुलाते हैं
अर्श जब-जब फ़रेब देता है
ग़म हमें रास्ता दिखाते हैं !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: महफ़ूज़: सुरक्षित; ईमान: आस्था; शबे-ग़म: दुःख की रात्रि; मुद्द'आ: विषय; मश्वरा: परामर्श;
मीरवाइज़: प्रमुख धर्मोपदेशक; अर्श: आसमान, भाग्य।
badhiya gazal..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गजल.
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