सबा आए सहर आए परिंदों की सदा आए
हमारा दिल खुला है जिसकी मर्ज़ी हो चला आए
दिया करते थे हरदम बद्दुआ रस्मे-वफ़ा को हम
करम की इन्तेहा ये: है हमारे घर ख़ुदा आए
खड़े हैं तश्ना-लब घर फूंक के राहे-तसव्वुफ़ में
मिलें गर पीर से नज़रें तो जी-भर के नशा आए
किया गिर्दाब से गर इश्क़ हमने तो निभाया भी
जहां साहिल नज़र आया सफ़ीने को डुबा आए
सभी कुछ सोच के थामा है हमने दामने-मौला
जज़ा आए क़ज़ा आए के: जीने की सज़ा आए
ख़याले-यार ने जिस दिन ख़ुदा से दूर बैठाया
उसी दिन हम सुबूते-आशनाई को मिटा आए
सियासत के दरिंदों ने शहर को ख़ाक़ कर डाला
ख़ुदा उतरे दिलों में तो उम्मीदों की शुआ आए !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: सबा: प्रातः समीर; सहर: उषा; सदा: स्वर, पुकार; बद्दुआ: अभिशाप; रस्मे-वफ़ा: निर्वाह-प्रथा; करम: कृपा; इन्तेहा: अति, सीमा; तश्ना-लब: प्यासे होंठ; भक्ति-मार्ग, पूर्ण समर्पण का मार्ग; पीर: गुरु, ईश्वर-प्राप्ति का माध्यम; गिर्दाब: भंवर; साहिल: किनारा;
सफ़ीने को: नाव को; मौला: हज़रत मौला अली, ख़ुदा के सच्चे सेवक;जज़ा: पारितोषिक; क़ज़ा: मृत्यु; सज़ा: दंड;
ख़याले-यार: प्रिय का ध्यान; सुबूते-आशनाई: प्रेम के प्रमाण; सियासत: राजनीति; दरिंदों: हिंस्र पशुओं; ख़ाक़: राख़; शुआ: किरण।
हमारा दिल खुला है जिसकी मर्ज़ी हो चला आए
दिया करते थे हरदम बद्दुआ रस्मे-वफ़ा को हम
करम की इन्तेहा ये: है हमारे घर ख़ुदा आए
खड़े हैं तश्ना-लब घर फूंक के राहे-तसव्वुफ़ में
मिलें गर पीर से नज़रें तो जी-भर के नशा आए
किया गिर्दाब से गर इश्क़ हमने तो निभाया भी
जहां साहिल नज़र आया सफ़ीने को डुबा आए
सभी कुछ सोच के थामा है हमने दामने-मौला
जज़ा आए क़ज़ा आए के: जीने की सज़ा आए
ख़याले-यार ने जिस दिन ख़ुदा से दूर बैठाया
उसी दिन हम सुबूते-आशनाई को मिटा आए
सियासत के दरिंदों ने शहर को ख़ाक़ कर डाला
ख़ुदा उतरे दिलों में तो उम्मीदों की शुआ आए !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: सबा: प्रातः समीर; सहर: उषा; सदा: स्वर, पुकार; बद्दुआ: अभिशाप; रस्मे-वफ़ा: निर्वाह-प्रथा; करम: कृपा; इन्तेहा: अति, सीमा; तश्ना-लब: प्यासे होंठ; भक्ति-मार्ग, पूर्ण समर्पण का मार्ग; पीर: गुरु, ईश्वर-प्राप्ति का माध्यम; गिर्दाब: भंवर; साहिल: किनारा;
सफ़ीने को: नाव को; मौला: हज़रत मौला अली, ख़ुदा के सच्चे सेवक;जज़ा: पारितोषिक; क़ज़ा: मृत्यु; सज़ा: दंड;
ख़याले-यार: प्रिय का ध्यान; सुबूते-आशनाई: प्रेम के प्रमाण; सियासत: राजनीति; दरिंदों: हिंस्र पशुओं; ख़ाक़: राख़; शुआ: किरण।
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