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सोमवार, 5 अगस्त 2013

सज्द: मंज़ूर हुआ...

यार     मग़रूर  हुआ  जाता  है
इश्क़   मशहूर  हुआ  जाता  है

ख़्वाब फिर आज उस परीवश का
ख़्वाबे-मख़्मूर    हुआ    जाता  है

आज  तो  ख़त्म  हो  ग़मे-हिजरां
आज  दिल  चूर  हुआ  जाता  है

मेरी सोहबत का असर ही कहिए
दोस्त   ग़य्यूर   हुआ    जाता  है

दूरियां    रूह   की     मिटा  लीजे
दिल से  दिल  दूर  हुआ जाता  है

छू    रहे    हैं    वो:  मेरी   पेशानी
दर्द     काफ़ूर     हुआ    जाता  है

आज  की शब विसाल   होगा  ही
सज्द:   मंज़ूर     हुआ  जाता  है !

                                          ( 2013 )

                                 -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: मग़रूर: गर्वोन्मत्त; परीवश: परियों जैसे चेहरे वाला; ख़्वाबे-मख़्मूर: मदोन्मत्त का स्वप्न; ग़मे-हिजरां: वियोग का दुःख; 
सोहबत: संगति;  ग़य्यूर: स्वाभिमानी; पेशानी: माथा;  काफ़ूर: कपूर, शीघ्र अदृश्य होना; विसाल: संयोग, मिलन; सज्द:: साष्टांग प्रणाम। 

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