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सोमवार, 5 अगस्त 2013

दिल में ख़ुदा के कौन...

दिल  में  ख़ुदा  के  कौन  मकीं  है  मेरे  सिवा
ऐसा   तो    ख़ुशनसीब   नहीं  है    मेरे  सिवा

राहे-ख़ुदा    में    सिर्फ़    मदीना    पड़ाव  था
हर  शख़्स  काफ़िले  का  वहीं  है  मेरे  सिवा

ख़ालिक़  है  मेरा  दोस्त  मेरा  हमनवा  भी  है
इक  तू  ही   यहां    शाहे-ज़मीं    है  मेरे  सिवा

आ-आ  के  मेरे  ख़्वाब  में  इस्लाह  जो  करे
ग़ालिब  का  वो:  सज्जाद:नशीं  है  मेरे  सिवा

बेहद सुकूं से  कर लिया सर  दरिय: ए  चनाब
कच्चे  घड़े  पे  किसको  यक़ीं  है  मेरे  सिवा ?

                                                             ( 2013 )

                                                       -सुरेश  स्वप्निल 

शब्दार्थ: मकीं: मकान में रहने वाला; हमनवा: सह-भाषी; शाहे-ज़मीं: पृथ्वी का शासक;इस्लाह: सुझाव; ग़ालिब: हज़रत मिर्ज़ा ग़ालिब, 
19 वीं सदी के महान शायर;  सज्जाद:नशीं: गद्दी पर बैठने वाला, उत्तराधिकारी; सर: विजय;  दरिय: ए चनाब: चनाब नदी।  

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