इस साल उम्मीदों के मुताबिक़ फ़सल हुई
मुद्दत के बाद एक मुकम्मल ग़ज़ल हुई
बाज़ार ने सब लूट लिया चैन-अमन-नींद
मेहनतकशां को दाल भी ख़्वाबे-अज़ल हुई
हुक्काम के फ़रेब पे हैरान है अवाम
मुश्किल हरेक सिर्फ़ काग़ज़ों पे हल हुई
हो क़ुदरती क़हर के: तिजारत के दाव-पेच
राहत की बात आई और आज-कल हुई
क्या-क्या दिखाए ख़्वाब रहबरों ने गांव को
दह्क़ां की ज़िंदगी ज़मीं से बे-दख़ल हुई
सारे जहां में धूम थी हिन्दोस्तान की
फिर किसके हक़ में किसलिए रद्दो-बदल हुई
क्या शाह मिला है के: बेचता फिरे ज़मीर
इज़्ज़त जहां में हिंद की यूं सर के बल हुई
हैरत से देखते हैं तरक़्क़ी के आंकड़े
कोई बताए ज़िंदगी किसकी सहल हुई ! ?
( 2005 / 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मुकम्मल: सम्पूर्ण; मेहनतकशां: श्रमिक-वर्ग; ख़्वाबे-अज़ल: मृत्यु-स्वप्न; हुक्काम: शासक-वर्ग; फ़रेब: छद्म;
अवाम: जन-सामान्य; क़ुदरती क़हर: प्राकृतिक आपदा; तिजारत: व्यापार; रहबरों: नेताओं; दह्क़ां: कृषक-वर्ग; बे-दख़ल: विस्थापित; रद्दो-बदल: फेर-बदल; ज़मीर: स्वाभिमान; सहल: सरल.
मुद्दत के बाद एक मुकम्मल ग़ज़ल हुई
बाज़ार ने सब लूट लिया चैन-अमन-नींद
मेहनतकशां को दाल भी ख़्वाबे-अज़ल हुई
हुक्काम के फ़रेब पे हैरान है अवाम
मुश्किल हरेक सिर्फ़ काग़ज़ों पे हल हुई
हो क़ुदरती क़हर के: तिजारत के दाव-पेच
राहत की बात आई और आज-कल हुई
क्या-क्या दिखाए ख़्वाब रहबरों ने गांव को
दह्क़ां की ज़िंदगी ज़मीं से बे-दख़ल हुई
सारे जहां में धूम थी हिन्दोस्तान की
फिर किसके हक़ में किसलिए रद्दो-बदल हुई
क्या शाह मिला है के: बेचता फिरे ज़मीर
इज़्ज़त जहां में हिंद की यूं सर के बल हुई
हैरत से देखते हैं तरक़्क़ी के आंकड़े
कोई बताए ज़िंदगी किसकी सहल हुई ! ?
( 2005 / 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: मुकम्मल: सम्पूर्ण; मेहनतकशां: श्रमिक-वर्ग; ख़्वाबे-अज़ल: मृत्यु-स्वप्न; हुक्काम: शासक-वर्ग; फ़रेब: छद्म;
अवाम: जन-सामान्य; क़ुदरती क़हर: प्राकृतिक आपदा; तिजारत: व्यापार; रहबरों: नेताओं; दह्क़ां: कृषक-वर्ग; बे-दख़ल: विस्थापित; रद्दो-बदल: फेर-बदल; ज़मीर: स्वाभिमान; सहल: सरल.
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