आज कहने को कुछ नहीं बाक़ी
चुप भी रहने को कुछ नहीं बाक़ी
बेच डाला वतन सियासत ने
फ़ख़्र करने को कुछ नहीं बाक़ी
ख़्वाब तक ख़्वाब हो गए जब से
तब से डरने को कुछ नहीं बाक़ी
रूह थर्रा गई उम्मीदों की
हाथ मलने को कुछ नहीं बाक़ी
लोग घबरा गए वफ़ाओं से
दिल बहलने को कुछ नहीं बाक़ी
देख ली मौत नौनिहालों की
दर्द सहने को कुछ नहीं बाक़ी
तोड़ ली डोर ख़ुदा ने हमसे
सर के झुकने को कुछ नहीं बाक़ी !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: फ़ख़्र: गर्व।
चुप भी रहने को कुछ नहीं बाक़ी
बेच डाला वतन सियासत ने
फ़ख़्र करने को कुछ नहीं बाक़ी
ख़्वाब तक ख़्वाब हो गए जब से
तब से डरने को कुछ नहीं बाक़ी
रूह थर्रा गई उम्मीदों की
हाथ मलने को कुछ नहीं बाक़ी
लोग घबरा गए वफ़ाओं से
दिल बहलने को कुछ नहीं बाक़ी
देख ली मौत नौनिहालों की
दर्द सहने को कुछ नहीं बाक़ी
तोड़ ली डोर ख़ुदा ने हमसे
सर के झुकने को कुछ नहीं बाक़ी !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: फ़ख़्र: गर्व।
sundar!!
जवाब देंहटाएंhar ghari marte hue roz jiye jaate he.
जवाब देंहटाएंab to marne ko hee kuchh bhi nahi baaki.
................j.n.mishra.425603364