दाग़ कुछ दस्तयाब हैं मेरे
एक-दो ही सबाब हैं मेरे
क्या करूं मैं के: मै नहीं छुटती
दोस्त ख़ाना-ख़राब हैं मेरे
नेक सरमाय: हैं बुज़ुर्गों का
शे'र यूं लाजवाब हैं मेरे
नींद आती हुई नहीं आती
दर-ब-दर ख़्वाब हैं मेरे
आप कब तक दवा किया कीजे
रोग तो बे-हिसाब हैं मेरे
ज़िक्र उठने लगा नशिस्तों में
ज़ख़्म फिर बे-नक़ाब हैं मेरे
क़त्ल हो के भी सुर्ख़रू: हूं मैं
क़तर:-ए-ख़ूं गुलाब हैं मेरे
हैं मुख़ातिब मेरे ख़ुदा मुझसे
अश्क अब कामयाब हैं मेरे !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: दस्तयाब: हस्तगत; सबाब: पुण्य; मै: मदिरा; ख़ाना-ख़राब: अ-गृहस्थ; नेक सरमाय: : पवित्र पूंजी; बुज़ुर्गों: पूर्वजों; दर-ब-दर: द्वार-द्वार भटकते; ज़िक्र: उल्लेख; नशिस्तों: गोष्ठियों; ज़ख़्म: घाव; बे-नक़ाब: अनावृत्त; सुर्ख़रू: : पूर्ण सफल; क़तर:-ए-ख़ूं: रक्त-कण; मुख़ातिब: संबोधित; अश्क: अश्रु।
एक-दो ही सबाब हैं मेरे
क्या करूं मैं के: मै नहीं छुटती
दोस्त ख़ाना-ख़राब हैं मेरे
नेक सरमाय: हैं बुज़ुर्गों का
शे'र यूं लाजवाब हैं मेरे
नींद आती हुई नहीं आती
दर-ब-दर ख़्वाब हैं मेरे
आप कब तक दवा किया कीजे
रोग तो बे-हिसाब हैं मेरे
ज़िक्र उठने लगा नशिस्तों में
ज़ख़्म फिर बे-नक़ाब हैं मेरे
क़त्ल हो के भी सुर्ख़रू: हूं मैं
क़तर:-ए-ख़ूं गुलाब हैं मेरे
हैं मुख़ातिब मेरे ख़ुदा मुझसे
अश्क अब कामयाब हैं मेरे !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: दस्तयाब: हस्तगत; सबाब: पुण्य; मै: मदिरा; ख़ाना-ख़राब: अ-गृहस्थ; नेक सरमाय: : पवित्र पूंजी; बुज़ुर्गों: पूर्वजों; दर-ब-दर: द्वार-द्वार भटकते; ज़िक्र: उल्लेख; नशिस्तों: गोष्ठियों; ज़ख़्म: घाव; बे-नक़ाब: अनावृत्त; सुर्ख़रू: : पूर्ण सफल; क़तर:-ए-ख़ूं: रक्त-कण; मुख़ातिब: संबोधित; अश्क: अश्रु।
नींद आती हुई नहीं आती
जवाब देंहटाएंदर-ब-दर ख़्वाब हैं मेरे
वाह बहुत खूब ....नींद का पूरा असर ख्याबों पर पड़ता है
wah wah, kya bat hain ......
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