इश्क़ ही कर लिया तो बुरा क्या किया
एक सज्दा किया तो बुरा क्या किया
आबे-ज़मज़म को ठुकरा के हमने अगर
जामे-उल्फ़त पिया तो बुरा क्या किया
जिस पे आशिक़ हैं हम उसके लायक़ नहीं
उसने अपना लिया तो बुरा क्या किया
हमको साक़ी ने दिल से लगा के अगर
चाक दामन सिया तो बुरा क्या किया
जिसको अल्लाहो-अकबर बताते हैं सब
उसको ईमां दिया तो बुरा क्या किया ?
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: सज्दा: धरती पर सर झुका कर प्रणाम; आबे-ज़मज़म: पवित्र मक्का के एक आरोग्य दायक स्रोत का जल; जामे-उल्फ़त: प्रेम का पात्र; साक़ी: मदिरा देने वाला; चाक दामन: फटा हुआ उत्तरीय, विदीर्ण हृदय; अल्लाहो-अकबर: सर्व-शक्तिमान ईश्वर।
एक सज्दा किया तो बुरा क्या किया
आबे-ज़मज़म को ठुकरा के हमने अगर
जामे-उल्फ़त पिया तो बुरा क्या किया
जिस पे आशिक़ हैं हम उसके लायक़ नहीं
उसने अपना लिया तो बुरा क्या किया
हमको साक़ी ने दिल से लगा के अगर
चाक दामन सिया तो बुरा क्या किया
जिसको अल्लाहो-अकबर बताते हैं सब
उसको ईमां दिया तो बुरा क्या किया ?
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: सज्दा: धरती पर सर झुका कर प्रणाम; आबे-ज़मज़म: पवित्र मक्का के एक आरोग्य दायक स्रोत का जल; जामे-उल्फ़त: प्रेम का पात्र; साक़ी: मदिरा देने वाला; चाक दामन: फटा हुआ उत्तरीय, विदीर्ण हृदय; अल्लाहो-अकबर: सर्व-शक्तिमान ईश्वर।
बढ़िया ग़ज़ल है । बधाई
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