उनकी बातें वो: ही जानें कैसा-क्या ब्यौपार किया
हम तो बस अपनी जाने हैं दिल का कारोबार किया
उनके दर दो-ज़ानू हो कर कितनी ही आवाज़ें दीं
बेहिस पे ईमां ले आए नाहक़ दिल बेज़ार किया
रहन रख चुके दिल की सारी दौलत क़ातिल के हाथों
तो ज़ालिम ने राह-ए-दिल में पलकों को दीवार किया
देख चुके थे दिल के गोरखधंधे में दीवानों की हालत
फिर भी होश न आया हमको ख़ुद जीना दुश्वार किया
ख़ुद अपनी ही ग़लती हो तो किस पे दें इल्ज़ाम भला
ग़ैरों ने कितना समझाया अपनों ने हुश्यार किया
हंस लेते या रो लेते दिल हल्का तो हो ही जाता
हम ऐसे अहमक़ निकले के: हर मौक़ा बेकार किया
ख़िज़्र हमारी राहत को आबे-हयात तो लाए थे
टूटे दिल जी के क्या करते सो हमने इनकार किया
शाहों की सोहबत में रहते रूह तलक पे दाग़ लिए
का'बे किस मुंह से जाएं हम ईमां तक तो ख़्वार किया।
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: दो-ज़ानू: घुटनों के बल बैठ कर; बेहिस: संवेदनहीन; बेज़ार: व्यथित; दुश्वार: हुश्यार: सावधान; अहमक़: मंदबुद्धि, बौड़म; ख़िज़्र: हज़रत ख़िज़्र, इस्लाम के पैगम्बरों में से एक, भूले-भटकों को मार्ग दिखाने वाले, किम्वदंती है कि वे सिकंदर को अमृत के झरने तक ले गए थे और उन्होंने उसे वे लोग दिखाए जो अमृत पी चुके थे; सिकंदर ने उनकी हालत देख कर अमृत पीने से इनकार कर दिया।
आब-ए-हयात : अमृत।
हम तो बस अपनी जाने हैं दिल का कारोबार किया
उनके दर दो-ज़ानू हो कर कितनी ही आवाज़ें दीं
बेहिस पे ईमां ले आए नाहक़ दिल बेज़ार किया
रहन रख चुके दिल की सारी दौलत क़ातिल के हाथों
तो ज़ालिम ने राह-ए-दिल में पलकों को दीवार किया
देख चुके थे दिल के गोरखधंधे में दीवानों की हालत
फिर भी होश न आया हमको ख़ुद जीना दुश्वार किया
ख़ुद अपनी ही ग़लती हो तो किस पे दें इल्ज़ाम भला
ग़ैरों ने कितना समझाया अपनों ने हुश्यार किया
हंस लेते या रो लेते दिल हल्का तो हो ही जाता
हम ऐसे अहमक़ निकले के: हर मौक़ा बेकार किया
ख़िज़्र हमारी राहत को आबे-हयात तो लाए थे
टूटे दिल जी के क्या करते सो हमने इनकार किया
शाहों की सोहबत में रहते रूह तलक पे दाग़ लिए
का'बे किस मुंह से जाएं हम ईमां तक तो ख़्वार किया।
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: दो-ज़ानू: घुटनों के बल बैठ कर; बेहिस: संवेदनहीन; बेज़ार: व्यथित; दुश्वार: हुश्यार: सावधान; अहमक़: मंदबुद्धि, बौड़म; ख़िज़्र: हज़रत ख़िज़्र, इस्लाम के पैगम्बरों में से एक, भूले-भटकों को मार्ग दिखाने वाले, किम्वदंती है कि वे सिकंदर को अमृत के झरने तक ले गए थे और उन्होंने उसे वे लोग दिखाए जो अमृत पी चुके थे; सिकंदर ने उनकी हालत देख कर अमृत पीने से इनकार कर दिया।
आब-ए-हयात : अमृत।
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