आज फिर ग़म ग़लत किया जाए
और दो-चार दिन जिया जाए
यूं किसी दिल का ऐ'तबार नहीं
दे रहे हैं तो रख लिया जाए
होशमंदी - ए - इश्क़ वाहिद है
जान कर भी ज़हर पिया जाए
चाक दामन हो तो रफ़ू कर लें
चाक दिल किस तरह सिया जाए
सिर्फ़ ईमान मांगते हैं वो:
सोचते हैं के: दे दिया जाए !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: होशमंदी-ए-इश्क़: प्रेम की संचेतना; वाहिद: विलक्षण; चाक दामन: फटा हुआ वस्त्र।
और दो-चार दिन जिया जाए
यूं किसी दिल का ऐ'तबार नहीं
दे रहे हैं तो रख लिया जाए
होशमंदी - ए - इश्क़ वाहिद है
जान कर भी ज़हर पिया जाए
चाक दामन हो तो रफ़ू कर लें
चाक दिल किस तरह सिया जाए
सिर्फ़ ईमान मांगते हैं वो:
सोचते हैं के: दे दिया जाए !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: होशमंदी-ए-इश्क़: प्रेम की संचेतना; वाहिद: विलक्षण; चाक दामन: फटा हुआ वस्त्र।
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