दो-जहां में कोई तेरे जैसा नहीं
हो भी कोई कहीं तो भी ऐसा नहीं
तेरी तस्वीर नज़रों से हटती नहीं
तू ख़ुदा की तरह है प' वैसा नहीं
लोग ग़ालिब कहें या कहें मीर अब
मेरा दीवान भी जैसा-तैसा नहीं
लोग कान्हा के बुत पे फ़िदा हो गए
कोई बतलाओ, कैसा है कैसा नहीं
चल पड़ा यूं ही तेरे शहर के लिए
गो सफ़र को मेरे पास पैसा नहीं !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: दीवान: शायरी का संग्रह; गो: यद्यपि ।
हो भी कोई कहीं तो भी ऐसा नहीं
तेरी तस्वीर नज़रों से हटती नहीं
तू ख़ुदा की तरह है प' वैसा नहीं
लोग ग़ालिब कहें या कहें मीर अब
मेरा दीवान भी जैसा-तैसा नहीं
लोग कान्हा के बुत पे फ़िदा हो गए
कोई बतलाओ, कैसा है कैसा नहीं
चल पड़ा यूं ही तेरे शहर के लिए
गो सफ़र को मेरे पास पैसा नहीं !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: दीवान: शायरी का संग्रह; गो: यद्यपि ।
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