छुड़ा के हाथ चले, दिल से जाओ तो जानें
हमारा नाम ज़ेहन में न लाओ तो जानें
निभा रहे हो शराइत सभी ज़माने की
रुसूम-ए-इश्क़-ओ-इबादत निभाओ तो जानें
गिरा रहे हो हम पे बर्क़ यूं सर-ए-महफ़िल
हमारे ख़्वाब में आ के सताओ तो जानें
तुम्हारे सोज़ के क़िस्से सुना किए हैं बहुत
कभी हमारी ग़ज़ल गुनगुनाओ तो जानें
हमारा इश्क़ भुलाना तो बहुत आसां है
बंदिश-ए-दीन-ओ-दुनिया भुलाओ तो जानें
हर एक घर में पल रहे हैं दुश्मन-ए-हव्वा
दरिंदगी के सिलसिले मिटाओ तो जानें
लकब तुम्हारा रहीम-ओ-करीम ज़ाहिर है
सुख़नवरों पे इनायत लुटाओ तो जानें !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ज़ेहन: मस्तिष्क; शराइत: शर्त्त का बहुव., उपबन्ध; रुसूम-ए-इश्क़-ओ-इबादत: प्रेम और पूजा की प्रथाएं;
बर्क़: बिजली; सर-ए-महफ़िल: सबके बीच; सोज़: मधुर गायन; बंदिश-ए-दीन-ओ-दुनिया: धर्म और समाज के प्रतिबंध;
दुश्मन-ए-हव्वा: हव्वा ( ईश्वर द्वारा रचित प्रथम स्त्री, स्त्रीत्व का प्रतीक) के शत्रु; दरिंदगी: पशुत्व; सिलसिले: अनुक्रम;
लकब: उपनाम; रहीम-ओ-करीम: दयालु और कृपालु; ज़ाहिर: प्रसिद्ध; सुख़नवर: सब के शुभाकांक्षी, साहित्यकार, इनायत: देन।
हमारा नाम ज़ेहन में न लाओ तो जानें
निभा रहे हो शराइत सभी ज़माने की
रुसूम-ए-इश्क़-ओ-इबादत निभाओ तो जानें
गिरा रहे हो हम पे बर्क़ यूं सर-ए-महफ़िल
हमारे ख़्वाब में आ के सताओ तो जानें
तुम्हारे सोज़ के क़िस्से सुना किए हैं बहुत
कभी हमारी ग़ज़ल गुनगुनाओ तो जानें
हमारा इश्क़ भुलाना तो बहुत आसां है
बंदिश-ए-दीन-ओ-दुनिया भुलाओ तो जानें
हर एक घर में पल रहे हैं दुश्मन-ए-हव्वा
दरिंदगी के सिलसिले मिटाओ तो जानें
लकब तुम्हारा रहीम-ओ-करीम ज़ाहिर है
सुख़नवरों पे इनायत लुटाओ तो जानें !
( 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: ज़ेहन: मस्तिष्क; शराइत: शर्त्त का बहुव., उपबन्ध; रुसूम-ए-इश्क़-ओ-इबादत: प्रेम और पूजा की प्रथाएं;
बर्क़: बिजली; सर-ए-महफ़िल: सबके बीच; सोज़: मधुर गायन; बंदिश-ए-दीन-ओ-दुनिया: धर्म और समाज के प्रतिबंध;
दुश्मन-ए-हव्वा: हव्वा ( ईश्वर द्वारा रचित प्रथम स्त्री, स्त्रीत्व का प्रतीक) के शत्रु; दरिंदगी: पशुत्व; सिलसिले: अनुक्रम;
लकब: उपनाम; रहीम-ओ-करीम: दयालु और कृपालु; ज़ाहिर: प्रसिद्ध; सुख़नवर: सब के शुभाकांक्षी, साहित्यकार, इनायत: देन।
बहूत अच्छा
जवाब देंहटाएंहर एक घर में पल रहे हैं दुश्मन-ए-हव्वा
दरिंदगी के सिलसिले मिटाओ तो जानें