ये: इश्क़-ए-बुतां है ऐ मोमिन, इस लज़्ज़त से शरमाना क्या
जब हो ही गया तो मान भी ले , अब रोना क्या, पछताना क्या
नासेह से ज़रा बच कर रहियो, कमबख़्त ख़ुदा से डरता है
ईमां जो सलामत है तेरा , दीदार से फिर घबराना क्या
ऐ हुस्न के मालिक ये: दौलत, आज आती है , कल जाती है
ये: रंग -ए- बहारां दो दिन है , इस रंगत पे इतराना क्या
आँखों से पी या होठों से , साक़ी भी है , साग़र भी है
मैख़ाने में जब आ ही गया , तो साक़ी क्या , पैमाना क्या
हम अपनी ख़ुदी पे हैरां हैं ; बस, नैन मिलाये बैठे रहे
जब आशिक़-ए-अन्वर हो ही चुके , तो आतिश में जल जाना क्या !
( 30 जन . 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: इश्क़-ए-बुतां: मूर्त्ति-प्रेम, यहाँ अर्थ मनुष्य-प्रेम से; लज़्ज़त: आनंद, नासेह: उपदेशक;
ईमां: आस्था; रंग-ए-बहारां: बहारों के रंग; साक़ी: मदिरा-पात्र में मदिरा डालने वाला;
साग़र: मदिरा-पात्र, प्याला; पैमाना: मदिरा-पात्र ; आशिक़-ए-अन्वर: सूर्य के प्रेमी ;
आतिश: अग्नि
जब हो ही गया तो मान भी ले , अब रोना क्या, पछताना क्या
नासेह से ज़रा बच कर रहियो, कमबख़्त ख़ुदा से डरता है
ईमां जो सलामत है तेरा , दीदार से फिर घबराना क्या
ऐ हुस्न के मालिक ये: दौलत, आज आती है , कल जाती है
ये: रंग -ए- बहारां दो दिन है , इस रंगत पे इतराना क्या
आँखों से पी या होठों से , साक़ी भी है , साग़र भी है
मैख़ाने में जब आ ही गया , तो साक़ी क्या , पैमाना क्या
हम अपनी ख़ुदी पे हैरां हैं ; बस, नैन मिलाये बैठे रहे
जब आशिक़-ए-अन्वर हो ही चुके , तो आतिश में जल जाना क्या !
( 30 जन . 2013 )
-सुरेश स्वप्निल
शब्दार्थ: इश्क़-ए-बुतां: मूर्त्ति-प्रेम, यहाँ अर्थ मनुष्य-प्रेम से; लज़्ज़त: आनंद, नासेह: उपदेशक;
ईमां: आस्था; रंग-ए-बहारां: बहारों के रंग; साक़ी: मदिरा-पात्र में मदिरा डालने वाला;
साग़र: मदिरा-पात्र, प्याला; पैमाना: मदिरा-पात्र ; आशिक़-ए-अन्वर: सूर्य के प्रेमी ;
आतिश: अग्नि
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